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नवल नीर बह रहा, मैल तो उतार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
रश्मियाँ जवान हैं, हो रहा विहान है,
कुछ समय के बाद तो, ढलान ही ढलान हैं,
चार दिन की चाँदनी के बाद, अन्धकार है,
जीत में छिपी हुई, जिन्दगी की हार है,
तापमान कह रहा, सोच लो-विचार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
मत करो कुतर्क को, सत्य स्वयंसिद्ध है,
मन को साफ कीजिए, पथ नहीं विरुद्ध है,
धर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
मनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
स्वाभिमान कह रहा, दम्भ मत उधार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
पंक में खिला कमल, किन्तु है अमल-धवल,
चोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
जो धरा के प्राणियों की, प्यास को मिटा रहा,
चाँद आपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
संविधान कह रहा, प्यार से पुकार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013
"भविष्य को सँवार लो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर गीत..आभार..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
जवाब देंहटाएंनवल नीर बह रहा, मैल तो उतार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
शनिवार 12/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बहुत ही खूब .. सुंदर गीत के सृजन के हेतु शुभकामनाएं ..
जवाब देंहटाएंवर्तमान भविष्य को सँवारने का कार्य करे।
जवाब देंहटाएंSundar post hamare blog par bhi aakar apni ray de technik ki duniya next post PDF CONVERTER
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत सृजन के लिए बधाई ..!
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत खूब आचार्य जी,वर्तमान ही भविष्य कों बना रहा हैं |
जवाब देंहटाएंमत करो कुतर्क को, सत्य स्वयंसिद्ध है,
जवाब देंहटाएंमन को साफ कीजिए, पथ नहीं विरुद्ध है,
धर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
मनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
स्वाभिमान कह रहा, दम्भ मत उधार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
आदरणीय शास्त्री जी ..बहुत सुन्दर सीख देती उत्साह बढाती रचना ... काविले तारीफ़ ..बधाई
नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...
भ्रमर५
आज की विशेष बुलेटिन जेपी और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंवर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो..बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गेय कविता।
जवाब देंहटाएंपंक में खिला कमल, किन्तु है अमल-धवल,
जवाब देंहटाएंचोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
जो धरा के प्राणियों की, प्यास को मिटा रहा,
चाँद आपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
संविधान कह रहा, प्यार से पुकार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
सुन्दर मनोहर। अप्रतिम प्रस्तुति प्रांजल अर्थ और भाव लिए।
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंपंक में खिला कमल, किन्तु है अमल-धवल,
जवाब देंहटाएंचोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
जो धरा के प्राणियों की, प्यास को मिटा रहा,
चाँद आपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
सुंदर सृजन .
बेहद उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
जवाब देंहटाएंमनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
जन जन को जाग्रत करने वाली पंक्तियाँ .......
सशक्त सृजन ... आभार शास्त्री जी।