सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
गीत भी डरे हुए, ताल-लय उदास हैं.
पात भी झरे हुए, शेष चन्द श्वास हैं,
दो नयन में पल रहा, नग़मग़ी सा ख्वाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
ज़िन्दगी है इक सफर, पथ नहीं सरल यहाँ,
मंजिलों को खोजता, पथिक यहाँ-कभी वहाँ,
रंग भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु नहीं फाग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
बाट जोहती रहीं, डोलियाँ सजी हुई,
हाथ की हथेलियों में, मेंहदी रची हुई,
हैं सिंगार साथ में, पर नहीं सुहाग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
इस अँधेरी रात में, जुगनुओं की भीड़ है,
अजनबी तलाशता, सिर्फ एक नीड़ है,
रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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बुधवार, 23 अक्तूबर 2013
"दिल की आग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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इस अँधेरी रात में, जुगनुओं की भीड़ है,
जवाब देंहटाएंअजनबी तलाशता, सिर्फ एक नीड़ है,
रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
बहुत सुंदर .
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है....................
जवाब देंहटाएंजिंदगी के भावों को प्रदर्शित करती सुन्दर रचना !!
wah.........bethareen...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहमारे दिल की आग
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti ..
जवाब देंहटाएंbehtreen prastuti
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सूंदर !
जवाब देंहटाएंप्राञ्जल प्रवाह-पूर्ण प्रशंसनीय प्रस्तुति । बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
जवाब देंहटाएंउम्दा
जवाब देंहटाएंवयस्कों की पी़डा का सही चित्रण। बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमन की पीड़ा कौन बताये..
जवाब देंहटाएं