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जन्म हिमालय पर लिया, नमन आपको मात।
शैलसुता के नाम से, आप हुईं विख्यात।।
कठिन तपस्या से मिला, ब्रह्मचारिणी नाम।
तप के बल से पा लिया, शिवशंकर का धाम।।
चन्द्र और घंटा रहे, जिनके हरदम पास।
घंटाध्वनि से हो रहा, दिव्यशक्ति आभास।।
जगजननी माता बनी, जग की सिरजनहार।
कूष्मांडा ने रचा, सारा ही संसार।।
मूरख भी ज्ञानी बने, कृपा करे जब मात।
स्कन्दमाता अब धरो, मेरे सिर पर हाथ।।
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योग-साधना से मिटे, क्षोभ-लोभ औ’ काम।
माता कात्यायिनी का, बैजनाथ है धाम।।
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कालरात्री का करो, सच्चे मन से जाप।
दुर्गाजी निज भक्त का, हर लेती हैं ताप।।
सद्यशक्ति का पुंज हैं, देती हैं परित्राण।
महागौरि श्वेताम्बरा, करती हैं कल्याण।।
देती सारी सिद्धियाँ, सिद्धिदात्रि मात।
नवमरूप में रम रहीं, माता सबके साथ।।
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मर्यादा की जीत है, मक्कारी की हार।
विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।।
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विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [14.10.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1398 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया
मनभावन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, विजयादशमी की हार्दिक मंगलकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट आज के (१३ अक्टूबर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - बुरा भला है - भला बुरा है - क्या कलयुग का यह खेल नया है ? पर प्रस्तुत की जा रही है | आपको विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें और सहर्ष बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति,.......विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति,.....आप को भी.विजयादशमी की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसबको हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की अनंत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
दुर्गा के नौ रूपों की सुंदर स्तुति। शुभ विजया दशमी।
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