जिसके सिर पर हो सदा, माता का आशीष।
वो ही तो कहलायगा, वाणी का वागीश।१।
लेखन करती मातु हैं, मैं हूँ मात्र निमित्त।
माता अपने दास का, करना पावन चित्त।२।
मुझ पर माता शारदे, करना यह उपकार।
जीवनभर सुनता रहूँ, वीणा की झंकार।३।
जो अपने अज्ञान का, करते हैं गुण-गान।
उनका विज्ञ समाज में, होता है अपमान।४।
ज्ञानी-सज्जनवृन्द का, हो आदर-सत्कार।
अभिमानी के सामने, कभी न मानूँ हार।५।
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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013
"दोहे-माता का आशीष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर दोहे ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : पाँच दोहे,
बहुत ही सुन्दर दोहे ...
जवाब देंहटाएंजय माता दी...:-)
बहुत सुन्दर दोहे.....
जवाब देंहटाएंमाँ की कृपा हम सभी पर बनी रहे.
नवरात्र की शुभकामनाएं.
सादर
अनु
बेहद प्रांजल रचना गंगाजल सी पावन धारा और प्रवाह लिए निष्कलुष मन का।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे.....
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती के गुणगान स्वरूप सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय ||
नवरात्रि की शुभकामनायें-
वाह कितने सुन्दर दोहे .. माँ को समर्पित .. हार्दिक शुभकामनायें ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं