चादर भी है, तकिया भी है,
बिछा हुआ है नर्म बिछौना।
रूठ गयी है निंदिया रानी,
कैसे आये स्वप्न सलोना?
चन्दा झाँक रहा है नभ से,
रात दुल्हनिया बनी हुई है।
मधुर मिलन की अभिलाषा में,
पलकें मेरी तनी हुई हैं।
युगों-युगों से रिक्त पड़ा है,
अब भी मेरे मन का कोना।
रूठ गयी है निंदिया रानी,
कैसे आये स्वप्न सलोना?
मीठी-रसवन्ती बातों से,
तुमने इतना हैं भरमाया।
काशी-हरिद्वार हो आया,
लेकिन मन को चैन न आया।
ओ बेदर्दी तुमने मुझ पर,
क्यों कर डाला जादू-टोना?
रचना कैसी रची हुई है,
आपाधापी मची हुई है।
गिरवी है किरदार हमारा,
मगर आबरू बची हुई है।
बन्धक आज उसूल हुए हैं,
हुआ आदमी कितना बौना।
रूठ गयी है निंदिया रानी,
कैसे आये स्वप्न सलोना?
|
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सोमवार, 21 अक्तूबर 2013
"कैसे आये स्वप्न सलोना?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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रचना कैसी रची हुई है,
जवाब देंहटाएंआपाधापी मची हुई है।
गिरवी है किरदार हमारा,
मगर आबरू बची हुई है।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,
काव्यान्जलि: हमने कितना प्यार किया था.
मन की बैचेनी सोने कहाँ देती हैं ...सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव मय रचना है ...
जवाब देंहटाएंचिन्तायें सब हर लेती हैं, सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव माय रचना
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मैं
sundr kavita sr
जवाब देंहटाएं