अमृत वर्षा कर रही, शरदपूर्णिमा रात।
आज अनोखी दे रहा, शरदचन्द्र सौगात।।
खिला हुआ है गगन में, उज्जवल-धवल मयंक।
नवल-युगल मिलते गले, होकर आज निशंक।।
निर्मल हो बहने लगा, सरिताओं में नीर।
मन्द-मन्द चलने लगा, शीतल-सुखद समीर।।
शरदपूर्णिमा आ गयी, लेकर यह सन्देश।
तन-मन, आँगन-गेह का, करो स्वच्छ परिवेश।
फसल धान की आ गयी, खुशियाँ लेकर साथ।
अब ना खाली रहेगा, मजदूरों का हाथ।।
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विधु रजनीश कलानिधि इंदु हिमकर है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंआप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 19/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...
सूचनार्थ।
बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंशरदपूर्णिमा आ गयी, लेकर यह सन्देश।
जवाब देंहटाएंतन-मन, आँगन-गेह का, करो स्वच्छ परिवेश।
सुन्दर चित्र।
बहुत ही सुन्दर दोहे,,,
जवाब देंहटाएंwaah sundar sandesh ....
जवाब देंहटाएंsarthak sundar dohe .saadar naman
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा पर दोहों में सार्थक संदेश।
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा, अमृत बरसे..
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