जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
सोंधी-सोंधी महक उड़ रही, गाँवों के गलियारों में,
खुशियों की भरमार हो रही, आँगन में, चौबारों में,
बैसाखी आने पर रौनक, चेहरों पर आ जाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
सूरज पर यौवन आया है, शीतलता का अन्त हुआ,
उपवन-कानन खिला हुआ है, चारों ओर बसन्त हुआ,
झूम-झूमकर नवकोपलियाँ, मन्द समीर बहाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
हँसतीं हैं बुराँश की कलियाँ, काफल “रूप” दिखाता है,
सुन्दर पंख हिलाती तितली, भँवरा राग सुनाता है
कोयलियाँ मस्ती में भरकर, कुहू-कुहूकर गाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
आम-नीम बौराये फिर से, जामुन भी बौराया है,
मधुमक्खी ने अपना छत्ता, फिर से नया बनाया है,
नीड़ बनाने को चिड़ियाएँ, तिनके चुन-चुन लाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
sundar rachna
जवाब देंहटाएंशानदार हर बार की तरह अनुपम छंद।
जवाब देंहटाएंबैसाखी आने पर रौनक, चेहरों पर आ जाती हैं।
जवाब देंहटाएंजनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।
बहुत सुंदर रचना सर। बैशाखी के गीत से मुस्कानों को बख़ूबी रौनक प्रदान किया आपने। सादर अभिवादन।
आम-नीम बौराये फिर से, जामुन भी बौराया है,
जवाब देंहटाएंमधुमक्खी ने अपना छत्ता, फिर से नया बनाया है,
बेहद ख़ूबसूरत गीत आदरणीय।
Waah Waah, kya baat hai. Sundar kavita ke liye badhayi to banti hai. Kallar soil & Green revolution in india advantages and disadvantages
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