नेताओं की आजकल, खतरे
में तकदीर।
धूल फाँकते फिर रहे, राजा और वजीर।।
पाँच साल में
जिन्होंने, किया नहीं कुछ काम।
जनता देगी हार का, उनको बड़ा इनाम।।
पूँजीपतियों का
सदा, जो रखते हैं ध्यान।
मिलता उनको मुफ्त
में, उड़नखटोला-यान।।
पैसे का ही खेल है,
लड़ना आमचुनाव।
पार भला कैसे लगे,
बिना अर्थ के नाव।।
जिनका धनबल पर बना,
यहाँ विजय का योग।
घोटाले हैं इसीलिए,
करते ऐसे लोग।।
सब कुछ कर जाते हज़म,
लेते नहीं डकार।
सत्ता पर उनका
रहे, जन्मसिद्ध अधिकार।।
जनसेवक बनकर गया, जो
शासन के द्वार।
टिकट हमेशा माँगता,
वो ही क्यों हर बार।।
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गुरुवार, 4 अप्रैल 2019
दोहे "उड़नखटोला-यान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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