पारा अब चढ़ने लगा, सरदी गयी सिधार।
गरम हवा के साथ में, उड़ता गर्द-गुबार।।
पक कर अब तैयार हैं, गेहूँ और मसूर।
फसल काटने चल पड़े, कृषक और मजदूर।।
जब से आया चैत हैं, सूरज हुआ जवान।
सूख रहे हैं धूप से, खेत और खलिहान।।
नदियों के तट पर उगे, खरबूजा-तरबूज।
ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।।
ठण्डक देता सन्तरा, ताकत देता सेब।
महँगाई इतनी बढ़ी, खाली सबकी जेब।।
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मंगलवार, 2 अप्रैल 2019
दोहे "खरबूजा-तरबूज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंThanks! It's such a very nice post. i will definitely share it with colleagues Apne Naam Ki Ringtone Kaise Banaye
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