कोशिश
तीन मिसरी शायरी (तिरोहे)
काफी दिनों से डॉ. सत्येन्द्र गुप्ता की
तीन मिसरी शायरी (तिरोहे) की नई विधा पर प्रकाशित कृति “कोशिश” मेरे पास समीक्षा
की कतार में थी। मगर समयाभाव के कारण समय नहीं निकाल पाया था। “कोशिश” के नाम से
तीन मिसरी शायरी (तिरोहे) के बारे में मेरे लिए लिखना एक नया अनुभव और कठिन कार्य था।
आयु में मुझसे लगभग 6 वर्ष बड़े डॉ.
सत्येन्द्र गुप्ता मेरे जन्मस्थान नजीबाबाद के निवासी हैं लेकिन मुझे उनसे मिलने
का कभी सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है। अक्सर मैं आपकी ग़ज़लें और शायरी आपके ब्लॉग
पर पढ़ा करता था और कुछ सुझाव भी दे दिया करता था। गत वर्ष 22 सितम्बर, 2018 को
चेन्नई में इण्डियन वर्चुअल सोसायटी फॉर पीस एण्ड एजुकेशन, बैंगलौर द्वारा आपको
तीन मिसरी सायरी तिरोहे के लिए हिन्दी साहित्य में मानद डॉक्टरेट की उपाधि से
अलंकृत भी किया गया है। यह व्यक्तिगत मेरे लिए ही नहीं अपितु मेरे गृह नगर
नजीबाबाद के लिए गौरव की बात है।
“कोशिश” तिरोहे तीन मिसरी शायरी एक नई
विधा को अविचल प्रकाशन हल्द्वानी (उत्तराखण्ड) / बिजनौर (उत्तर प्रदेश) द्वारा प्रकाशित
किया गया है। तिरोहे के इस संकलन में 160 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 250-00 रुपये
है।
शायर डॉ. सत्येन्द्र गुप्ता ने खुदा को
हाजिर-नाजिर मान कर इस संकलन का शुभारम्भ करते हुए तीन मिसरी शायरी में लिखा है-
“उसकी शान में
कुछ तो अता कर
हर चीज़ मिल
जाती है दुआ से
माँगकर तो देख
ले ख़ुदा से”
कवियों/शायरों को नसीहत देते हुए तीन मिसरी शायरी
में कवि कहता है-
“साहस है तो
इबारत नई लिख
शब्दों के माने
बदलते रहते हैं
रिवाज पुराने
बदलते रहते हैं”
कविता के बारे में कवि ने अपनी बात कुछ
इस प्रकार से कही है-
“दिमाग से
निकलकर आई पन्नों पर
धीरे-धीरे वक्त
की नजर हो गई
पन्नों पर
कविता अमर हो गई”
मुहब्बत के बारे में कवि ने अपने ढंग से बहुत
ही उम्दा बात कही है-
“हसरत बनकर रह
गई मुहब्बत
शाम कूचा-ए-यार
में गुजर गई
सुबह इश्किया
खुमार में गुजर गई”
इसी मिजाज का एक और तिरोहा भी देखिए-
“रोशनाई इश्क
की सारी उड़ गई
खाली मगर दिल
की दवात न हुई
मिलकर भी लगा
मुलाकात ना हुई”
कवि ने जिह्वा के बारे में अपने अलग
अन्दाज में कुछ इस तरह से तिरोहा लिखा है-
“नश्तर से भी
खरोंच नहीं लगी
इस जुबान का
यार क्या करते
इतनी तेज तलवार
यार क्या करते”
इंटरनेट पर तंज करते हुए शायर ने लिखा है-
“कंचे,
गिल्ली-डण्डे, पतँगें उड़ाना
वो खेलने के
तौर पुराने हो गये
नैट के ही
बच्चे दीवाने हो गये”
फैशन का बढ़ता खुमार देखते हुए शायर लिखता
है-
“टाइट जीन्स ,
टी शर्ट, मिनी स्कर्ट्स
दुनिया को बदले
जमाने हो गये
हम तो जैसे
कपड़े पुराने हो गये”
बादल के बारे में कवि ने अपनी अलग परिभाषा करते हुए लिखा है-
“बादल के पास
अपनी कुछ भी नहीं
समन्दर का गम
लेकर बरसता है
उसके ही दर्द
में पिघलता है”
तीन मिसरी शायरी से ही एक तिरोहा और
देखिए-
“हमें दोस्ती
निभाते सदियाँ गुजर गईं
वो दोस्ती के
दुखड़े सुनाने में लगे हैं
हम मुद्दत से
रिश्ते निभाने में लगे हैं”
“जो चलता जाता है उसको ही मंजिल मिलती
है” बहुत समय से डॉ. सत्येन्द्र गुप्ता लिखने में मशगूल थे। फलस्वरूप आज उनके
पास शायरी का बिपुल भण्डार है। आपकी अब तक दस पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकीं
हैं। आशा करता हूँ कि भविष्य में आपकी और भी कृतियाँ पाठकों को पढ़ने को
मिलेंगी। मैं आपके दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ।
साहित्य
की विधाएँ साहित्यकार की देन होती हैं। जो समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने
का मकसद बताती हैं। सूर, कबीर, तुलसी, जायसी, नरोत्तमदास इत्यादि समस्त कगवियों
ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ नया देने का प्रयास किया है। “कोशिश”
तिरोहे तीन मिसरी शायरी भी एक नया प्रयोग है। जो डॉ. सत्येन्द्र गुप्ता की कलम
से निकला है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वाश भी
है कि आपकी तीन मिसरा शायरी पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी
और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
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पेश कर दी डिश नई
जवाब देंहटाएंमीठी भी है नमकीन भी
स्वाद खाने का बदल सा जाएगा.
बहुत सुन्दर प्रयास किया है और समीक्षा भी श्रेष्ठ 👌👌👌
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