शब्दों के कुशल चितेरे थे। हर मनोभावों के शब्द-चित्र, गढ़-गढ़ कर तीव्र उकेरे थे। जो लिखा वही इतिहास बना, जो कहा वही प्रतिमान हुआ। हर शब्द कलम से जो निकला, नव-सूरज सा गतिमान हुआ। जो कथा कही वह अमर हुई, एक मापदण्ड का रूप बनी। हर उपन्यास जनप्रिय बना, गाथा जन का प्रतिरूप बनी। जो लिखा गजब का लेखन था, हर पात्र बोलता लगता था। वह रोता था, सब रोते थे, सब हँसते थे जब हँसता था। है अतुल तुम्हारा योगदान, भाषा का रूप सँवारा है। हे गद्य विधा के प्रेमचन्द्र! तुमको शत् नमन हमारा है।। ![]() |
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"जो कथा कही वह अमर हुई,एक मापदण्ड का रूप बनी"
जवाब देंहटाएंसत्य वचन. आपको और राज जी को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन की याद दिलाने का आभार!
मुंशी जी को शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! मुंशी जो को मेरा सादर प्रणाम!
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या,प्रस्तुति के लिये आपका आभार्
जवाब देंहटाएंजब प्रेमचंद जी का निधन हुआ था, एक अशार सर्वत्र प्रकाशित हुआ था और उसकी बहुत चर्चा हुई थी; प्रेमचंद जी का नाम आते ही वही शेर मेरे कानों में ध्वनित होने लगता है--
जवाब देंहटाएं'बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना,
तुम्हीं सो गए दास्ताँ कहते-कहते !'
उनके जन्मदिन पर भी मुझे यही पंक्तियाँ याद आ रही हैं !
हिंदी की ज़मीन पर जितनी गहरी लकीरें प्रेमचंदजी खींच गए हैं, उन्हें भुलाया नहीं जा सकता. इस प्यारी-सी रचना के लिए राजजी को बधाई और आपको साधुवाद !
bahut sarahneey prastuti.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है
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चाँद, बादल और शाम
badhiya prstuti..
जवाब देंहटाएंbadhayi ho..aapne premchand ke kirtiyon ki yaad dila di..
mahan upanyaskaar ko naman hai..
aapko bhi badhayi..sundar rachan..
एक अच्छी रचना की अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंmunshi ji ko shat shat naman aur aapka aabhar.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना मुंशी जी के बारे में...प्रस्तुति के लिये आपका आभार्
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