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आज की विद्रूपताओं पर गहरा कटाक्ष किया है…………बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंभारत के अब लोग, चले हैं राह वनैली,
जवाब देंहटाएंउपवन में उग रही, आज है घास विषैली ।।
बहुत सटीक अभिव्यक्ति .... सचमुच जो कुछ हो रहा है वह हमारी संस्कृति के विपरीत है ....
बहुत ही प्रभावशाली एवं सत्य को आईना दिखाती दोनों ही कुण्डलियाँ वर्तमान स्थित पर करारा कटाक्ष हैं !
जवाब देंहटाएंआज की विद्रूपताओं पर गहरा कटाक्ष किया है…………बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंVandana ji se sahmat.
uttam..........
जवाब देंहटाएंbahut sundar !
kundliyan bhi aur sundariyan bhi
जोरदार कटाक्ष, पर हम नहीं सुधरेंगे ....
जवाब देंहटाएंaapki dono kundaliyan vyangaatmaak bhaav se autprot bahut uttam lagi.sach me bheed jutaane ke liye itne nimn star tak gir jaayenge ye prabandhak sharm aati hai sochkar.match pahle bhi hote the tab kya darshak kum aate the???shasti ji meri kavita satya ka vlupt astitv ko aapke precious comment ka intjaar hai.next post tabhi daalungi.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष...बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ..
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक है कुण्डलियां...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कुंडलिया ... एक अच्छा सन्देश ..और समाज में फैले इस अर्धनग्नता के रोग पर एक सही और गहरा कटाक्ष ... बल्कि जो लाज छोड़ दे वो सुंदरी की श्रेणी में कहीं भी नहीं...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसटीक और तीखा कटाक्ष ....अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
आज के हालात पर बहुत गहरा कटाक्ष ... अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली कुंडलियाँ.
जवाब देंहटाएंनया तन्त्र है ट्वेन्टी ट्वेन्टी,
जवाब देंहटाएंरूहें घूमे भटकी भटकी।
लाज-हया को छोड़, नाचती हैं सुन्दरियाँ।।
जवाब देंहटाएंbahut sahi vivran......
शास्त्री जी इस घोर कलियुग में
जवाब देंहटाएंकैसा अनर्थ कर रहें हैं आप
चीयर्स बालाओं पर कुण्डलियाँ लिख
उनके दीवानों का क्यूँ ले रहें है शाप
बंदरों से पूछो बंदरियायें क्या होती हैं
आप क्या जाने उनकी मस्त अदाएं
किस किस को डुबोती हैं.
बलात्कार,नारी शोषण आदि क्या अश्लीलता इनमें
सहायक नहीं ? परन्तु, मजे के नाम पर सभी तो
इसमें डूबे हैं.
उन लोगों की बुद्धि पर तरस आता है जो खेल के लिए ऐसी सुन्दरियों का मैदान पर होना आवश्यक समझते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसुंदर कुण्डलियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत तीखी और कटाक्षमय कुंडलियां...
जवाब देंहटाएंएकदम ठीक कहा है आपने...
बहुत ही प्रभावशाली आज की इन बालाओं का सही आईना दिखाती कुन्डलियाँ। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ठंग से आज के माहोल पर कटाक्ष किया है ।
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है!
जवाब देंहटाएं--
बंदरियाँ, सुंदरियाँ और कुंडलियाँ
का तालमेल बहुत प्रभावशाली है!
waah..kya baat kahi sir...ekdam sarthak!
जवाब देंहटाएंशाश्त्री जी आपके द्वारा दी गई बंदरियों के फोटो को बन्दर तांक झाँक में लगे हैं,जरा संभाल कर रख लीजियेगा ,फोटो ही उडा न ले जाएँ.
जवाब देंहटाएं'कह मयंक कविराय , हुई नंगी बन्दरियाँ |
जवाब देंहटाएंलाज हया को छोड़ , नाचती हैं सुंदरियां |
.................................बहुत सटीक रचना शास्त्री जी !
रूपचंद्र जी,
जवाब देंहटाएंसभ्यता संस्कृति की विद्रूपता पर बहुत अच्छा कटाक्ष किया है. सच है कि हमारे देश की संकृति ऐसी न थी लेकिन ये भी सच है कि आज लोग इनको पसंद कर रहे तभी ये क्रिकेट के मैदान में नाच रही. बदलाव हमारी सोच में हो तभी तो संस्कृति बचे. बहुत अच्छा likha है, बधाई स्वीकारें.
आज के भोंडे प्रदर्शन पर तीखा प्रहार !
जवाब देंहटाएंउत्तम कुंडलियों के द्वारा सटीक विश्लेषण...
जवाब देंहटाएंसत्य हे --और सत्य को उजागर करना हमारा कर्तव्य है
जवाब देंहटाएंयह हमारी संस्क्रति नही है ?
सच बात है ,अत्यंत अशोभनीय एवं किसी भी दृष्टि से रोचक तो नहीं ही लगती हैं ये "चियर-गर्ल्स"
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