मेरे वीराने उपवन में, सुन्दर सा सुमन सजाया क्यों? सूने-सूने से मधुबन में, गुल को इतना महकाया क्यों? मधुमास बन गया था पतझड़, संसार बन गया था बीहड़, लू से झुलसे, इस जीवन में, शीतल सा पवन बहाया क्यों? ना सेज सजाना आता था, मुझको एकान्त सुहाता था, चुपके से आकर नयनों में, सपनों का भवन बनाया क्यों? मैं मन ही मन में रोता था, अपना अन्तर्मन धोता था, चुपके से आकर पीछे से, मुझको दर्पण दिखलाया क्यों? ना ताल लगाना आता था, ना साज बजाना आता था, मेरे वैरागी कानों में, सुन्दर संगीत सुनाया क्यों? |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 11 मई 2011
"क्यों..?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
mohak bhav-pravar , bodhgamy rachana hriday ko chhuti huyi pyari lagi . sabhar sir /
जवाब देंहटाएं"मधुमास बन गया था पतझड़ -------पवन बहाया क्यूँ "
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना |बधाई
आशा
मेरे वैरागी कानों में आकर,
जवाब देंहटाएंसुन्दर संगीत सुनाया क्यों?
इन प्रश्नों के उत्तर ना ही मिलें तो अच्छा है , सुन्दर रचना बधाई
युवा -मन को समर्पित एक प्यारभरी कविता !कुछ पल ही सही हम भी युवा हो गए ---इतनी अच्छी कविता सुनाने का धन्यवाद शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंना ताल लगाना आता था,ना साज बजाना आता था,मेरे वैरागी कानों में,सुन्दर संगीत सुनाया क्यों?
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,आपकी 'क्यूँ' का जबाब तो मुझे 'ईश'
कृपा ही लगता है.अब देखिये न यदि आपके 'वैरागी कानों' में सुन्दर संगीत न सुनाई पड़ता तो आपकी सुन्दर 'ताल' और 'साज' से हम तो वंचित ही रह जाते.
लेकिन शास्त्रीजी एक बात बताईयेगा कि आपके कान वैरागी 'क्यूँ' हुए थे.क्या इसका राज हमें आप बतलायेंगे ?
गुरु जी
जवाब देंहटाएंआपने इतने दिनों बाद ये पोस्ट लगाई तो कहना चाहूँगा....
इतनी खूबसूरत रचना को पोस्ट करने में,
इतना वक़्त लगाया क्यों, इतना वक़्त लगाया क्यों
आफरीन!
बहुत अच्छा लगा पढ़कर। क्यों के सैकड़ों कौवे मन के उपवन में काँव काँव कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमधुमास बन गया था पतझड़,
जवाब देंहटाएंसंसार बन गया था बीहड़,
लू से झुलसे, इस जीवन में,
शीतल सा पवन बहाया क्यों?
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई!
ना ताल लगाना आता था,
जवाब देंहटाएंना साज बजाना आता था,
मेरे वैरागी कानों में,
सुन्दर संगीत सुनाया क्यों?
कोमल भावनाओं से सुरभित सुन्दर गीत !
आपकी रचना अच्छी है।
जवाब देंहटाएंआपके क्यों का उत्तर आपको हम दे देंगे लेकिन एक शर्त है कि आप हमारे ‘क्यों‘ का जवाब दे दीजिए।
इस तरह हम दोनों एक दूसरे के क्यों को हल कर देंगे।
कैसी तरकीब बताई , क्यों ?
आखि़र ‘समझदार लोग‘ भ्रष्टाचार क्यों न करें, जबकि सदाचार का बदला असीमा के पापा को कुछ भी न मिला हो, सिवाय बर्बादी और गुमनामी के ? Solution
बहुत बढ़िया रचना है.
जवाब देंहटाएंBahut khoob.
जवाब देंहटाएं............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
प्रेम रस से सराबोर कविता पढकर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
three days out of station hone ke kaaran yeh post der se padhi.bahut bahut khoobsurat prastuti.maja aa gaya padhkar.
जवाब देंहटाएं