मित्रों! आज अपनी बहुत पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ! मुझे तो पसन्द नहीं है! आपको भी पसन्द नहीं आयेगी! क्योंकि इसमें सिर्फ तुकबन्दी ही है! |
मुझे हँसना नही आया। उन्हें रोना नही आया।। मिलन के गीत मन ही मन, हमेशा गुन-गुनाता था। हृदय का शब्द होठों पर, कभी बिल्कुल न लाता था। मुझे कहना नही आया। उन्हें सुनना नही आया।। कभी जो भूलना चाहा, जुबां पर उनकी ही रट थी। अन्धेरी राह में उनकी, चहल-कदमी की आहट थी। मुझे सपना नही आया। उन्हें अपना नही भाया।। बहुत से पत्र लाया था, मगर मजमून कोरे थे। शमा के भाग्य में आये, फकत झोंकें-झकोरे थे। मुझे लिखना नही आया। उन्हें पढ़ना नही आया।। बने हैं प्रीत के क्रेता, जमाने भर के सौदागर। मुहब्बत है नही सौदा, सितम कैसे करूँ उन पर। मुझे लेना नही आया। उन्हें देना नही आया।। |
मुझे तो अच्छी लगी यह कविता...
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद बहुत बेकार है....यकीं जानिये...जिसे इतनी अच्छी रचना पसंद न आये उससे क्या आशा करें, बताईये??? :)
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंहमें तो बहुत भायी।
जवाब देंहटाएंवाह !!! आपका ' लेन-देंन ' हमें तो बहुत भाया है शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी , गजब लिखते हैं , कायल बना लिया आपने।
जवाब देंहटाएंमुझे लेना नहीं आया , उन्हें देना नहीं आया ..
जवाब देंहटाएंलेनदेन हर किसी को कहाँ आता है ...
बेहतरीन रचना !
बहुत से पत्र लाया था,
जवाब देंहटाएंमगर मजमून कोरे थे।
शमा के भाग्य में आये,
फकत झोंकें-झकोरे थे।
मुझे लिखना नही आया।
उन्हें पढ़ना नही आया।।
बहुत सुन्दर रचना ..
aapki tukbandi hi kavita ki khoobsurti hai.vaise bhi tukaant kavita hi jyada prbhaav daalti hai.aap kya kahte hain???
जवाब देंहटाएंsameer sir ki baat par gaur kariyega aap :)
जवाब देंहटाएंमुझे तो पसन्द नहीं है!
जवाब देंहटाएंआपको भी पसन्द नहीं आयेगी!
शास्त्रीजी गलत बयानी न कीजियेगा प्लीज.यदि आपको यह रचना पसंद न आती तो आप यहाँ प्रस्तुत ही क्यूँ करते.
हाँ आप कुछ शरमाते से जरुर लग रहें हैं ,मोहब्बत के लेन देन में.अब क्या कहें आपकी इस बात के लिए
"मिलन के गीत मन ही मन,हमेशा गुन-गुनाता था।हृदय का शब्द होठों पर,कभी बिल्कुल न लाता था।मुझे कहना नही आया।उन्हें सुनना नही आया।।"
सच सच बताईयेगा अच्छा लग रहा है न ?
बढ़िया रचना है .
जवाब देंहटाएंअरे वाह्…………इतनी प्यारी रचना है और आप इसे तुकबंदी कह रहे हैं……………हमे तो बहुत भायी।
जवाब देंहटाएंमुझे लेना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हें देना नही आया।।
सारा रोना ही इस बात का है कि आदाब और जाब्ते बहुत कम लोग जानते हैं .
बधाई .
आपकी रचना का शीर्षक पढ़ के अचानक ही लगा जैसे "लेन-देन" नहीं, "लादेन" लिखा हो!
जवाब देंहटाएंरचना आपकी बहुत पसंद आयी!