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शुक्रवार, 27 मई 2011
"बदनाम" का शेर और ग़ज़ल (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंउन तेरी फ़रेबी नज़रों का, "बदनाम" ज़माना याद आया
क्या बात कही सर!....बहुत बढ़िया गज़ल है.
सादर
वाह वाह बहुत ही सुन्दर गज़ल लगाई है …………पसन्द आई।
जवाब देंहटाएंक्या गज़ल कही है, पढ़कर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंवाह !……पसन्द आई। पढ़कर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंhttp://aruneshdave.blogspot.com/2011/05/blog-post_22.html
मिट जाएँगे हम, मर जाएँगे हम,इकरारे मुहब्बत में इक दिन
जवाब देंहटाएंउन तेरी फ़रेबी नज़रों का, "बदनाम" ज़माना याद आया.bhbahut sunder gajal .man aanandit ho gayaa,badhaai aapko.
please visit my blog and leave a comment also.
बदनाम जी रचना पढ़वाने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल है .आभार.
जवाब देंहटाएंbahut umda ghazal hai.post karne vaale aur likhne vaale dono ka aabhar.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत सुंदर गजल कही धन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल ....यहाँ पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंkhoobsurat gazal lagaayee hai guru jee
जवाब देंहटाएं