तुम्हारा मकां मयक़दा हो गया है। यहाँ जो भी आया गधा हो गया है। फक़त ज़ाम देखा, छुआ तक नहीं है, मगर दिल अभी से फिदा हो गया है। नज़र की कटारी जिसे तुमने मारी, हमेशा को वो ग़मज़दा हो गया है। भजन-कीर्तन और खाना-कमाना, सिकन्दर का कब से जुदा हो गया है। बनावट भरा “रूप” भाता बहुत है, जवां जिस्म मानो खुदा हो गया है। |
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गुरुवार, 19 मई 2011
"मानो खुदा हो गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर बहुत लाज़वाब..आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंसादर
gazal to idhar bhi taiyaar hai lekin aaj main zara guddu ko seedha karne me laga hoon isliye siva aapko badhaai dene ke aur main kar bhi kya sakta hoon
जवाब देंहटाएंbahut badhiya dada !
umda gazal.............jai ho !
केवल संयत, शालीन और विवादरहित टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी!
is tippani se koi vivaad nahin hoga .....ha ha ha ha
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंक्या कहने , हर शे'र लाजवाब
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई बयां करते एक से एक बढ़िया शेर - बहुत सही और बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंगहन शब्दों के साथ बेहतरीन शब्द रचना
जवाब देंहटाएंबढ़िया गज़ल बन गई है.
जवाब देंहटाएंखुबसुरत गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंमुझे इस गजल में कयामत दिखी है।
जवाब देंहटाएंये मारू गजल किस कलम से लिखी है??
आजकल आप रूप बदल बदल कर 'रूप' दिखा रहें हैं शास्त्री जी.आपका यह 'रूप' भी बहुत अच्छा लगा.अलबेला जी से चैट कर खूब अलबेलापन भी दिख रहा है आपकी सुन्दर प्रस्तुति में.
जवाब देंहटाएंनज़र की कटारी जिसे तुमने मारी,
जवाब देंहटाएंहमेशा को वो ग़मज़दा हो गया है।
दिनों दिन हमतो आपके ग़ज़लकार “रूप” पर फ़िदा हुए जा रहे हैं।
:) :) आज कल कुछ अलग ही मूड में दिख रहे हैं ..गज़ल जो न करवाए वो कम है ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
फटाफट एक गज़ल तैयार हो गई..क्या बात है.
जवाब देंहटाएंवाह-वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बन पड़ी है ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअलबेला जी, ये क्या हो गया है
जवाब देंहटाएंबूढ़ा दिल फिर से जवाँ हो गया है
बात करे है नयन कटारी की
कैसा ज़ख़्म ये कहाँ हो गया है
ख़ुदा है बस वही एक बलंदो-बाला
मिटने वाला बदन कैसे ख़ुदा हो गया है
किसे कैसे बचाए इस घायल से 'अनवर'
इसी फ़िक्र में दिल मेरा धुआँ हो गया है
lalitya bhari najm achhi lagi .
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,प्रणाम
जवाब देंहटाएंआज की गजल अच्छी रही |आपके कमेंट्स से प्रोत्साहन मिलता है |मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार
आशा
wah shandaar.
जवाब देंहटाएंबढ़िया शेर निकाले हैं,शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंक्या बात है आप आरेंज कैप पर्पल कैप दोनो अपने नाम कर ली
जवाब देंहटाएंफक़त ज़ाम देखा, छुआ तक नहीं है,मगर दिल अभी से फिदा हो गया है।
जवाब देंहटाएंनज़र की कटारी जिसे तुमने मारी,हमेशा को वो ग़मज़दा हो गया है।bhaut hi behatrin shabdon ka chyan.bahut hi badiyaa gajal.badhaai aapko.aabhaar
गज़ल पढ़के बूढ़ा जवां हो गया है.......
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रयास जो अनायास था !
वाह वाह, बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंबनावट भरा रूप भाता बहुत है ,
जवाब देंहटाएंजवाँ जिस्म मानो खुदा हो गया है .
नजर की कटारी जिसे तुमने मारी ,
हमेशा को वह गमजदा हो गया है ।
हमेशा को वह पर -कटा हो गया है . बेहतरीन अश -आर हैं आपके -
खामोश ज़िन्दगी को आवाज़ दे रहे हो ,
पर काट कर किसी के परवाज़ दे रहे हो .
खुबसुरत गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंअलग अन्दाज की सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!! क्या कहने।
जवाब देंहटाएं