नीड़ में ज़र तलाश करते हो! भीड़ में नर तलाश करते हो! छल-फरेबी के हाट में जाकर, नीर में सर तलाश करते हो!! शाख़ वालों से खौफ खाते हो, चीड़ में जड़ तलाश करते हो! दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में, खीर में गुड़ तलाश करते हो! ज़ाम दहशत के ढालने वालो, पीड़ में सुर तलाश करते हो! “रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं, हूर में उर तलाश करते हो! ------ शब्दार्थ- सर=सरोवर |
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शनिवार, 21 मई 2011
"भीड़ में नर तलाश करते हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
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जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपका बॉलीवुड नहीं होलीवुड भी पक्का है.बस 'हूरों'से पंगा न लेना.
जवाब देंहटाएंदेखतें हैं आपके 'रूप' की नुमाइश क्या क्या गुल खिलाती हैं.भाभीजी साथ रहेंगीं तो 'रूप' खिलेगा ही.
अब तो दावत में आपको हमें खीर तो खिलानी ही पड़ेगी ,बेशक बिना गुड़ वाली हो.
नीड़ में ज़र तलाश करते हो!
जवाब देंहटाएंभीड़ में नर तलाश करते हो!
बहुत सटीक पंक्तियाँ
अहा!
जवाब देंहटाएंहूर में उर तलाश करते हो।
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
uff sir ab bhi HUR ki talash...:)
जवाब देंहटाएंwaise ek ek pankti sateek aur behatareen...
बड़ी गहरी और सामयिक बात कह दी आपने।
जवाब देंहटाएंज़ाम दहशत के ढालने वालो,
जवाब देंहटाएंपीड़ में सुर तलाश करते हो!
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं सर!
सादर
ज़ाम दहशत के ढालने वालो,
जवाब देंहटाएंपीड़ में सुर तलाश करते हो!
bahut sateek panktiyan.bahut achchi rachna.
छल-फरेबी के हाट में जाकर,
जवाब देंहटाएंनीर में सर तलाश करते हो!
बहुत खूब ...
नीड़ में ज़र तलाश करते हो!
जवाब देंहटाएंभीड़ में नर तलाश करते हो!
क्या बात है
दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
जवाब देंहटाएंखीर में गुड़ तलाश करते हो!
बिल्कुल सही लिखा है आपने! सटीक पंक्तियाँ! बेहतरीन रचना!
आजकल तो कमाल पर कमाल कर रहे हैं…शानदार लेखन का परिचायक है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder talash.....
जवाब देंहटाएं'' रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं,
जवाब देंहटाएंहूर में उर तलाश करते हो!---
आजकल क्या हो गया है आपको आप तो कमाल कर रहे है ...कहा से मिला वो हिरा ,जिसने कुंदन बना दिया शास्त्री जी !
ज़ाम दहशत के ढालने वालो,
जवाब देंहटाएंपीड़ में सुर तलाश करते हो!
“रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं,
हूर में उर तलाश करते हो!
------bahut hi gahari yathart ko darsaati bemisaal rachanaa.badhaai aapko.
छल-फरेबी के हाट में जाकर,
जवाब देंहटाएंनीर में सर तलाश करते हो!!
शाख़ वालों से खौफ खाते हो,
चीड़ में जड़ तलाश करते हो!
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
बहुत सुन्दर कविता..........दिल को आनन्दित करती हुई पंक्तियाँ!
जवाब देंहटाएंbehatreen.......
जवाब देंहटाएं“रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं,
जवाब देंहटाएंहूर में उर तलाश करते हो!
bahut umdaa........हूर mei bas wahi dekhe..or kuch nahi hai dekhne or samjhne ko
क्या बात है...
जवाब देंहटाएंशाख़ वालों से खौफ खाते हो,
जवाब देंहटाएंचीड़ में जड़ तलाश करते हो!
दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
खीर में गुड़ तलाश करते हो!
बहुत सटीक पंक्तियाँ
“रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं,हूर में उर तलाश करते हो!------क्या कहना कमाल है आप की लेखनी में ,सलाम है आप की सोच को
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