आज नभ पर बादलों का है ठिकाना। हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।। कल तलक लू चल रही थी, धूप से भू जल रही थी, आज हैं रिमझिम फुहारें, लौट आयी हैं बहारें, बुन लिया है पंछियों ने आशियाना। हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।। हल किसानों ने उठाया, खेत में उसको चलाया, धान की रोपाई होगी, अन्न की भरपाई होगी, गा उठेगा देश फिर, सुख का तराना। हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।। ताल के नम हैं किनारे, मिट गयीं सूखी दरारें, अब कुमुद खिलने लगेंगे, भाग्य धरती के जगेंगे, आ गया है दादुरों को गीत गाना। हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।। |
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गुरुवार, 21 जून 2012
"अब कुमुद खिलने लगेंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रस्तुति चर्चा मंच पर, मचा रही हडकम्प ।
जवाब देंहटाएंमित्र नहीं देरी करो, मार पहुँचिये जम्प ||
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शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
आशा का संचार करती खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह....!
जवाब देंहटाएंवंदना जी ने ठीक ही तो कहा है!
कुँवर जी,
बहुत सुन्दर सुखमय रचना....
जवाब देंहटाएं:-)
कल तलक लू चल रही थी,
जवाब देंहटाएंधूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
आ गया है दादुरों को गीत गाना ....वातावरण को साकार करती खूबसूरत रचना .क्या बात है अपने शास्त्री जी की .
सच इस मौसम का कब से इंतजार था.. सुहानी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंHamare yaha to abhi bhi aag padh rahi hai shrimaan ji..
जवाब देंहटाएंताल के नम हैं किनारे,
जवाब देंहटाएंमिट गयीं सूखी दरारें,
अब कुमुद खिलने लगेंगे,
भाग्य धरती के जगेंगे,
वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार
बहुत प्यारी कविता !!!
जवाब देंहटाएंएक नये उत्साह के साथ प्रकृति की नई अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंये फुहारें मन पड़ें अब..
जवाब देंहटाएंबारिश की शुभकामना, करें आप स्वीकार.
जवाब देंहटाएंशुरू हो गयी यहाँ भी, शीतल मस्त फुहार.
सादर बधाईयाँ.
इस मौसम की तो जबरदस्त इन्तजार हो रहा है आपकी प्रस्तुति आशा जाग्रत कर रही है बहुत अच्छी रचना लगी
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