वो अनुगामी होगा
कैसे?
जो सबके पथ का
निर्माता।
ज्ञान-कर्म का मर्म
बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।
चन्दा में भी गरमी
भर दे,
सूरज को भी शीतल कर
दे,
जहाँ न पहुँचे रवि
की किरणें,
लेकिन वो पल में हो
आता।
ज्ञान-कर्म का मर्म
बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।
वही बहाता गंगा-सागर,
सबकी भरता खाली
गागर.
वही सिखाता ढाई आखर,
वही प्यार को है
उपजाता।
ज्ञान-कर्म का मर्म
बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।
सबका मालिक वो है
एक,
लेकिन उसके नाम
अनेक,
वो पूरी दुनिया
पहचाने,
जग उसको पहचान न
पाता।
ज्ञान-कर्म का मर्म
बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।
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बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंवही है सबका विधाता .........सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंअनुभूति : ईश्वर कौन है ?मोक्ष क्या है ?क्या पुनर्जन्म होता है ?
मेघ आया देर से ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ईश आराधना जैसे अभिव्यक्ति को पंख लग गए हों। जय श्रीकृष्णा।
उस को शत शत नमन..
जवाब देंहटाएंअपनी मानसिक्ता बदलनी होगी। संघर्षमें आदमी अकेला होता है ये कहकर भगवानको आपने फिरसे अकेला कह दिया क्योकी सुना हुवा है जब कहीभी कुछभी नहिथा वही था वही था। आप(शरीर) छोडके तुम(इश्वर अपने शरीरका चेतन स्वरुप अपनी "सांसोको चलाने वाला जीसका साक्षातकार" कर लेना हरेक मनुष्यका पहला कर्तव्य है भगवानकीही सत्ता है और हम उससे अलग नहि जीसका अहेशास पल पल हमारे साथ या फिर सिर्फ वही है यही जीवनका उदेष्य हो) सो नर मुक्तिको फल पावे।
जवाब देंहटाएंआये हरेक मनुष्य धरती पर तब उसे समझ नहि होती। पर धरतीसे विदाय लेनेसे, जानेसे पहले समझ आजाती है और अगर समझ ऐसी हो जैसे गुरुजी कहते है के हरेक मनुष्य अपने आपको परमात्माही समझे तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाये! और बात पल्ले पड गइ हो तो स्वयँ ही परमात्मा है समझने की जरुरत क्या है।
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