जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
जिनके बंगलों के ऊपर,
निर्लज्ज ध्वजा लहराती,
रैन-दिवस चरणों को जिनके,
निर्धन सुता दबाती,
जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
मुस्टण्डों को दूध-मखाने,
बालक भूखों मरते,
जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
दौलत से घर भरते,
भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
वयोवृद्ध सीधा-सच्चा, हो जहाँ भूख से मरता, सत्तामद में चूर वहाँ हो, शासक काजू चरता, ऐसे निठुर वजीरों को, क्यों झेल रही सरकार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। |
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शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
"स्वतन्त्रता का नारा है बेकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोषि के गुन गान किए गुनोपेत कह दोषि ।
जवाब देंहटाएंसोए सासन ब्यवस्था, दंड कर्म की पोषि ।१७७४।
भावार्थ : -- गुणोपेत को दूषित कहकर जो दोषियों के गुणगान करती हो, ऐसी शासन व्यवस्था अपराधों को पोषित करती है ।
"जहां जघन्य अपराधों को सामान्य घटना की श्रेणी में रखा जाए, फिर वह शासन प्रणाली ही दोष पूर्ण है.…."
सटीक रचना !
जवाब देंहटाएंमैं
Happy Birth Day "Taaru "
मैने कहाँ भरा ?
जवाब देंहटाएंजोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
दौलत से घर भरते,
बहुत सुंदर ।
बहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंमुस्टण्डों को दूध-मखाने,
जवाब देंहटाएंबालक भूखों मरते,
जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
दौलत से घर भरते,
भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
ऐसे निठुर वजीरों को, क्यों झेल रही सरकार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
अजी वो सरकार तो अपनी मौत मर गई अब भारत आज़ाद है। चारा -कोयला खाने वाले सब गए।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं