अब कैसे दो शब्द
लिखूँ, कैसे उनमें अब भाव भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
मौसम की विपरीत
चाल है,
धरा रक्त से हुई
लाल है,
दस्तक देता कुटिल
काल है,
प्रजा तन्त्र का
बुरा हाल है,
बौने गीतों में
कैसे मैं, लाड़-प्यार और
चाव भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
पंछी को परवाज
चाहिए,
बेकारों को काज
चाहिए,
नेता जी को राज
चाहिए,
कल को सुधरा आज
चाहिए,
उलझे ताने और
बाने में, कैसे सरल स्वभाव
भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
भाँग कूप में
पड़ी हुई है,
लाज धूप में खड़ी
हुई है,
आज सत्यता डरी
हुई है,
तोंद झूठ की बढ़ी
हुई है,
रेतीले रजकण में
कैसे, शक्कर के अनुभाव
भरूँ?
तन-मन के रिसते
छालों के, कैसे अब मैं घाव
भरूँ?
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 31 अगस्त 2014
"गीत-दो शब्द" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 01/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर गीत 1 बधाई1
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और शब्दों से सुसज्जित गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
अति सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! मन के भाव खोल कर रखे हैं !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकवि मन की विवशता और पीड़ा को सुंदर शब्द देता गीत
जवाब देंहटाएंभाँग कूप में पड़ी हुई है, लाज धूप में खड़ी हुई है, आज सत्यता डरी हुई है, तोंद झूठ की बढ़ी हुई है,
जवाब देंहटाएंसुंदर मनोहर भाव पूर्ण अपने परिवेश की गंध लिए सशक्त गीत ।
शुक्रिया हमारा सेतु शरीक करने के लिए सुन्दर समायोजन सभी सेतुओं का आपने किया है।
जवाब देंहटाएं