चार उँगलियाँ और
अँगूठा,
मिलकर बन जाता है
घूँसा।
सुमन इकट्ठे रहें
जहाँ पर,
वो कहलाती है
मंजूषा।।
रंग-बिरंगे फूल
जहाँ हो,
वही चमन अच्छा लगता
है।
ममता-प्यार-दुलार
करे जो,
वो साथी सच्चा लगता
है।।
जन्मभूमि का मान
बढ़ाये,
वो ही तो सपूत
कहलाता।
खाये यहाँ का-गाये
वहाँ का,
माता का वो दूध
लजाता।।
फूलों की रक्षा
करने को,
काँटे होते हैं
उपवन में
इसीलिए तो तिरछी
उँगली,
करनी पड़ती है जीवन
में।
टेढ़ी उँगली
मक्कारी की,
मजबूरी में ही अपनाओ।
सीधी उँगली से
इंगित कर,
सबको सीधी राह
बताओ।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 26 अगस्त 2014
"सबको सीधी राह बताओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
शिक्षाप्रद रचना !
जवाब देंहटाएंधर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसीधी अंगुली दिशा निर्देशित करती है.
कभी कभार चेतावनी भी दे जाती है.
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंरविकर जी रचना चोरी करके ले जा रहे हैं चर्चा के लिये बच के :)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के लिए चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --
हटाएंटेढ़ी उँगली मक्कारी की,
जवाब देंहटाएंमजबूरी में ही अपनाओ।
सीधी उँगली से इंगित कर,
सबको सीधी राह बताओ।।
बेहद सशक्त पंक्तियाँ शास्त्रीजी की। बढ़िया चर्चा मंच।
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंshikshaprad kavita .. bahut badhiya
जवाब देंहटाएं