निन्यानबे के फेर में आया हूँ कई बार
रहमत औ’ करम ने तेरी, मुझको लिया उबार
ऐसे भी हैं कई बशर, अटक गये हैं जो
श्रम करके मैंने अपना, मुकद्दर लिया सँवार
कल तक थी जो कमी, वो पूरी हो गई है आज,
शबनम में आ गया है, मोतियों सा अब निखार
चलता ही रहा जो, वो पा गया है मंजिलें
पतझड़ के बाद आ गई, चमन में फिर बहार
नदियाँ मुकाम पा के, समन्दर सी हो गईं
थे बेकरार जो कभी, उनको मिला क़रार
महताब को दी रौशनी, जब आफताब ने,
बहने लगी है रात में, शीतल-सुखद बयार
चेहरा चमक उठा, दमक उठा है “रूप” भी
फिर से हरा-भरा हुआ, उजड़ा हुआ दयार
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शनिवार, 23 अगस्त 2014
"फिर से हरा-भरा हुआ उजड़ा हुआ दयार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
चलता ही रहा जो, वो पा गया है मंजिलें
जवाब देंहटाएंपतझड़ के बाद आ गई, चमन में फिर बहार
.....बहुत सुन्दर चलना ही जिंदगी है .....
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर ।
फेर 99 का बहुत अच्छा होता है
जवाब देंहटाएंखुशकिस्मत होते हैं वे लोग
जिनका 100 नहीं होता है ।
बहुत सुंदर ।
bAhut sunder abhivyakti...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंरूप की दमक ,लेखन चमका गई !
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनिन्यानबे के फेर में आया हूँ कई बार
जवाब देंहटाएंरहमत औ’ करम ने तेरी, मुझको लिया उबार
सुंदरम मनोहरं
sundar aapka baal sahity sadaiv pyara lagta hai hardik badhai aapko
जवाब देंहटाएं