चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
दुखी क्यों लाल-बाल औ’ पाल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।।
|
बढ़ा है मँहगाई का क्लेश,
वतन में फैला हिंसा-द्वेष,
हो गया नष्ट विमल परिवेश,
नहीं पहले जैसा संगीत,
सजेंगे कैसे सुर और ताल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
सत्य का मन्त्र हुआ
अस्पष्ट,
हो गया तन्त्र आत
तो भ्रष्ट,
लोक की किस्मत में
हैं कष्ट,
बचेगा कैसे भोला
कीट,
हर तरफ मकड़ी के
हैं जाल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन
बेहाल?
|
हुए जननायक अब मग़रूर,
नयी नस्लें मस्ती में चूर,
श्रमिक है आज मजे से दूर,
राह में काँटे हैं भरपूर,
धरा का “रूप” हुआ विकराल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
|
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शनिवार, 16 अगस्त 2014
"आजादी करती है आज सवाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सचमुच सच्ची आजादी अभी तक नहीं आई है..
जवाब देंहटाएंअपने समय का सत्य रही होगी ये कविता अब परिवेश बदला है परिवर्तन की आश्वस्त करती बयार है। यौमे आज़ादी मुबारक।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ )