गीत प्रणय के गाता उपवन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- पेड़ और पौधें भी फिर से, नवपल्लव पा जाते हैं, रंग-बिरंगे सुमन चमन में, हर्षित हो मुस्काते हैं, नयी फसल से भर जाते हैं, गाँवों में सबके आँगन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- आत है जब नवसम्वतसर, मन में चाह जगाता है, जीवन में आगे बढ़ने की, नूतन राह दिखाता है, होली पर अच्छे लगते हैं, सबको नये-नये व्यंजन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- माता का वन्दन करने को, आते हैं नवरात्र सुहाने, तन-मन का शोधन करने को, गाते भक्तिगीत तराने, राम जन्म लेते नवमी पर दुःख दूर करते रघुनन्दन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- हर्ष मनाते बैशाखी पर, अन्न घरों में आ जाता है, कोयल गाती पंचम सुर में, आम-नीम बौराता है, नीर सुराही का पी करके, मन हो जाता है चन्दन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- देवभूमि अपना भारत है, आते हैं अवतार यहाँ, षड्ऋतुओं का होता संगम, दुनियाँ में है और कहाँ, भारत की पावन माटी को, करता हूँ शत्-शत् वन्दन। मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी, खुश हो करके करते गुंजन।। -- |
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मंगलवार, 6 अप्रैल 2021
गीत "नवसम्वतसर मन में चाह जगाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव शास्त्री जी अपना मौसम अपना देश और आप से समर्पित साहित्यकार जब हों तो क्यों रचना मन को न मंत्र मुग्ध करे, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदेवभूमि अपना भारत है,
जवाब देंहटाएंआते हैं अवतार यहाँ,
षड्ऋतुओं का होता संगम,
दुनियाँ में है और कहाँ,
भारत की पावन माटी को,
करता हूँ शत्-शत् वन्दन।
देश भक्ति से ओतप्रोत बहुत सुंदर गीत...।
नमन आदरणीय 🙏
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
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