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सोमवार, 19 अप्रैल 2021
गीत "बूढ़ा पीपल जिन्दा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आदरणीय शास्त्री जी,आपकी सुंदर यथार्थपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।
जवाब देंहटाएंveerujan.blogspot.com
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र में शासन करने के, सब ही अधिकारी हैं,
किन्तु अराजक तत्वों को, क्यों मिलती भागीदारी हैं,
मुक्त करो इनसे संसद को, कहता हर बाशिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी, होता वो शरमिन्दा है।।
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ओछी गगरी सदा छलकती, भरी हुई चुपचाप रहे,
जिसकी दाढ़ी में तिनका है, वही ज्ञान की बात कहे,
आस्तीन का साँप हमेशा, करता चुगली-निन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।.
वाह शास्त्री जी राजनीतिक झरबेरियों को जन -मन के आहत मन को यूं गीतों में रख दिया यह कला कोई आपसे सीखे।
सच को दो टूक कह दिया है आपने शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-21) को "श्वासें"(चर्चा अंक 4042) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
जय मां हाटेशवरी.......
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
20/04/2021 मंगलवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
वर्तमान समय की विडम्बनाओं पर करारा
जवाब देंहटाएंकटाक्ष करती
कमाल की रचना
सादर
आज के हालातों का खरा-खरा चित्रण !
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना । यथार्थ को उकेर दिया है ।
जवाब देंहटाएंसंस्कारों के ह्रास को पीपल के पुराने पेड़ के माध्यम से सुंदरता से बताया आपने सार्थक सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्क्यात्री जी कहूँ आपके रचना कौशल के विषय में . जब भी पढ़ती हूँ अभिभूत होजाती हूँ . बहुत शानदार रचना .
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, बहुत ही सुंदर और सशक्त दोहे देश में फैली आराजकता और दुराचार पर । सच में हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता इससे शर्मिंदा होती रहती है और हमारे देश का ह्रास होता है। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंआज के हालात को व्यक्त करती बेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बूढ़े पीपल ने समाज को बदलते हुए देखा है. शायद उसे ही सबसे ज़्यादा समझ है कि हम ऐसे क्यूँ हो गए.अब सर पर पीपल की छांव भी नहीं. शास्त्रीजी, आपकी रचना ने दुखती रग को छू दिया. कोशिश रहेगी कि पीपल,नीम बरगद के पेड़ लगा सकूँ. याद दिलाने और एक सपना बोने के लिए आभार और प्रणाम.
जवाब देंहटाएंखरी-खरी मत कह बेहतर कि तू हरदम चुपचाप रहे,
जवाब देंहटाएंसदियों पहले क्या कबीर पर गुज़री तुझको याद रहे !