-- धरती
पर पैदा हुए, जीव सभी अल्पज्ञ। लेकिन
मानव समझता, अपने को सर्वज्ञ।। -- साधक
को अब साध्य का, नहीं रहा अनुमान। खुद
को खुदा समझ रहा, अपने को इंसान।। -- साधन
हों कितने भले, लेकिन सुख से हीन। जीना-मरना
सदा से, ईश्वर के आधीन।। -- जो
कुछ हमको चाहिए, देती हमें जमीन। माने
नहीं कृतज्ञता, होता वही कमीन।। -- कितना
भी आगे बढ़े, दुनिया में
विज्ञान। लेकिन
उसमें है नहीं, देवलोक का ज्ञान।। -- जीवन
को कैसे जियें, दिशा बताता योग। आते
इसको सीखने, परदेसों से लोग।। -- वैदिक
विद्या पर भले, हों कितने मतभेद। लेकिन
सब यह मानते, सत्य सनातन वेद।। |
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शुक्रवार, 12 नवंबर 2021
दोहे "जीना-मरना सदा से ईश्वर के आधीन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सटीक और सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंसादर।