-- निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज। -- अश्लीलता के गान, नौजवान गा रहा, फटी हुई पतलून से, जग को रिझा रहा, भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- श्वान और विडाल जैसा, मेल हो रहा, नग्नता, निलज्जता का, खेल हो रहा, चैनल समाज की जहाँ, हों लूट रहे लाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- भटकी हुई जवानी है, भारत के लाल की, ऐसी है दुर्दशा, मेरे भारत-विशाल की, आजाद और सुभाष के, सपनों पे गिरी गाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें, लिखकर कठोर सत्य, यहाँ किसको सुनायें, जंगल में लोमड़ी के, शीश पे धरा है ताज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुये हैं बाज।। -- रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा, लगता है घोड़े बेच के, भगवान सो रहा, अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- |
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शनिवार, 27 नवंबर 2021
गीत "दुर्दशा,मेरे भारत-विशाल की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (27 -11-2021 ) को 'भाईचारा रहे, प्रेम का सागर हो जग' (चर्चा अंक 4261) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव