-- कातिक की है पूर्णिमा, सजे हुए हैं घाट। सरिताओं के रेत में, मेला लगा विराट।। -- एक साल में एक दिन, आता है त्यौहार। बहते निर्मल-नीर में, डुबकी लेना मार।। -- गंगा तट पर आज तो, उमड़ी भारी भीड़। लगे अनेकों हैं यहाँ, छोटे-छोटे नीड़।। -- खिचड़ी गंगा घाट पर, लोग पकाते आज। जितने भी आये यहाँ, सबका अलग मिजाज।। -- गुरू पूर्णिमा पर्व पर, खुद को करो पवित्र। सरिताओं के घाट पर, आज नहाओ मित्र।। -- गुरु नानक का जन्मदिन, देता है सन्देश। जीवन में धारण करो, सन्तों के उपदेश।। -- बुला रहा है आपको, हर-हर का हरद्वार। मैली मत करना कभी, गंगा जी की धार।। -- गंगा जी के नाम से, भारत की पहचान। गंगा तीनों लोक में, करती मोक्ष प्रदान।। -- |
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शनिवार, 20 नवंबर 2021
दोहे "खुद को करो पवित्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(21-11-21) को "प्रगति और प्रकृति का संघर्ष " (चर्चा - 4255) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
कार्तिक पूर्णमासी का मेला आज के समय में भी लगता है । कितनी भी बाजारें खुल जाएं पर मेले की अपनी रौनक होती है । बहुत सुंदर सार्थक दोहे ।
जवाब देंहटाएंकार्तिक मेले पर अद्भुत दोहे आ0
जवाब देंहटाएंपरंपरा को जीवित रखे हुए
सादर अभिवादन
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमयानुररूप सुंदर दोहे त्योहार के अनुरूप।
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