खादी
और खाकी दोनों में बसते हैं शैतान। अचरज
में है हिन्दुस्तान! अचरज
में है हिन्दुस्तान!! तन
भूखा है, मन रूखा है खादी वर्दी वालों का, सुर
तीखा है, उर सूखा है खाकी वर्दी वालों का, डर
से इनके सहमा-सहमा सा मजदूर-किसान! अचरज
में है हिन्दुस्तान! अचरज
में है हिन्दुस्तान!! मानवता-मर्यादा घुटती है खादी के बानों मे, अबलाओं
की लज्जा लुटती है सरकारी थानों में, खादी-खाकी
की केंचुलियाँ, सचमुच हैं वरदान! अचरज
में है हिन्दुस्तान! अचरज
में है हिन्दुस्तान!! खुले
साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी, बेकसूर
थानों में मरते,
जनता है दुखियारी, कितना
प्यारा अपना नारा, भारत बहुत महान! अचरज
में है हिन्दुस्तान! अचरज
में है हिन्दुस्तान!! माली
लूट रहे हैं बगिया को बन करके सरकारी, आलू-दाल-भात
महँगा है, महँगी हैं तरकारी, जीने
से मरना महँगा है, आफत में इन्सान! अचरज
में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!! -- |
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सोमवार, 15 नवंबर 2021
गीत "खादी-खाकी की केंचुलियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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समकालीन मुद्दो को उठाती सुंदर रचना🙏
जवाब देंहटाएंसमकालीन मुद्दों को उठाती सुंदर रचना... सचमुच खाकी और खादी रूपी जिन पहरेदारों हमने देश के लिए खड़ा किया वही इसे लूटने के काम करते रहते हैं...
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(16-11-21) को " बिरसा मुंडा" (चर्चा - 4250) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
मार्मिक और कटु सत्य
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