मतलब में करना नहीं, लोगों की मनुहार।। अपने लेखन में करो, अपने आप सुधार। रँगे पश्चिमी रंग में, जब से अपने गीत। तब से अपने देश का, बिगड़ गया संगीत।। वचनबद्ध रहना सदा, कहलाना प्रणवीर। वचन निभाने के लिए, हमको मिला शरीर।। कहना सच्ची बात को, मत होना भयभीत। जो दे सही सुझाव को, वही कहाता मीत।। कहलाना मत बेवफा, कुटिल न चलना चाल। कभी वफा की राह में, नहीं बिछाना जाल।। |
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रविवार, 28 नवंबर 2021
दोहे "कुटिल न चलना चाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (29 -11-2021 ) को 'वचनबद्ध रहना सदा, कहलाना प्रणवीर' (चर्चा अंक 4263) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हमेशा की तरह सार्थक भावों का सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं