ये माना कि ग़म में हुई चश्म नम हैं, मगर दिल-जिगर में बहुत जोशे-दम हैं। भरोसा जिन्हें अपने जज़्बात पर है, मगर उनको एतबार अपने पे कम हैं। अन्धेरों-उजालों भरी जिन्दगी में, हर इक कदम पर भरे पेंच-औ-खम हैं। जिन्हें दर्द पीने की आदत लगी है, दुनिया में उन जैसे कितने सनम हैं। समाया हुआ “रूप” दिलवर का दिल में, सितारों की किस्मत में लिक्खे सितम हैं। |
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गुरुवार, 25 नवंबर 2021
ग़ज़ल "एतबार अपने पे कम हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह! जोशोखरोश से भरी बेहतरीन ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.11.2021 को चर्चा मंच पर <a href="https://charchamanch.blogspot.com/> चर्चा - 4260 </a> में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल हर शेर कुछ कहता सा।
जवाब देंहटाएंसादर।