रदीफों-काफ़ियों को, जो इशारों पर नचाता है ग़ज़लग़ो ग़ज़ल लिखने के, सलीके को बताता है -- देखकर जाम-ओ-मीना, फसल शेरों की उगती है मिलाकर दाल-चावल, शान से खिचड़ी पकाता है -- रवायत का नहीं मुहताज़ होता है कोई जुम्ला ज़िगर के खून से वो वजन, लब्ज़ों का बढ़ाता है -- महज़ तुकबन्दियों पर ही, नहीं होता फिदा कोई सधा अशआर ही माशूक के, दिल को रिझाता है -- लगी दिल की लगे जिससे, वही तो दिल्लग़ी होती सुख़नवर “रूप” मक़्ते में, हबीबों को दिखाता है -- |
बहुत प्रेरक गजल ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय, सादर नमस्कार 🙏❗️ गजल पर लिखी गयी प्रेरक गजल! साधुवाद!
जवाब देंहटाएंवक़्त न जाने कैसे कैसे चेहरे दिखाता है।
जवाब देंहटाएंगज़ब कहा सर 👌
सादर प्रणाम