आज एक कव्वाली बन पड़ी है...! नजरों से गिराने की ख़ातिर, पलकों पे सजाये जाते हैं। मतलब के लिए सिंहासन पर, उल्लू भी बिठाये जाते हैं।। -- जनता ने चुना नहीं जिनको, वो चोर द्वार से आ पहुँचे, लोकतन्त्र में असरदार, सरदार बनाये जाते हैं। -- ढका हुआ भाषण से ही, ये लोकतन्त्र का चेहरा है लोगों को सुनहरी-ख्वाब यहाँ, हर बार दिखाये जाते हैं। -- आगे से अरबी घोड़ी है, पीछे से लगती गैया है, परदेशी दुधारू गैया के, नखरे भी उठाये जाते हैं।। -- संकर नसलें-संकर फसलें, जब से आई हैं भारत में, तब से जन-गण की आँखों में, आँसू ही पाये जाते हैं। -- नेता जी को केवल अपने, दामाद बहुत ही भाते है, निर्धन बेटों की धरती पर, अब महल बनाये जाते हैं। -- कब्जा है 'रूप' लुटेरों का, गांधी बाबा के खादर में, खद्दर की ओढ़ चदरिया को, धन-माल कमाये जाते हैं। -- |
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रविवार, 24 जुलाई 2022
गीतिका "कब्जा है 'रूप' लुटेरों का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२५-०७ -२०२२ ) को 'झूठी है पर सच दिखती है काया'(चर्चा-अंक ४५०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सटीक और सार्थक रचना ।।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसटीक तीक्ष्ण व्यंग्य रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
राजनीति के यथार्थ को प्रस्तुत करती सुंदर अभिव्यक्ति , बहुत शुभकामनायें आदरणीय ।
जवाब देंहटाएं