वाणी से खिलता है उपवन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- शब्दों को मन में उपजाओ फिर इनसे कुछ वाक्य बनो सन्देशों से फलता गुलशन स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन -- तुकबन्दी मादक-उन्मादी बन्दी में होती आजादी सुख बरसाता रहता सावन -- आता नहीं बुढ़ापा जिसको तुकबन्दी कहते हैं उसको छाया रहता जिस पर यौवन -- दुर्जन के प्रति भरा निरादर महामान्य का करती आदर तुकबन्दी से होता वन्दन -- तुकबन्दी मनुहार-प्यार है यह महकता हुआ हार है तुकबन्दी होती चन्दन-वन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- शायर की यह गीत–ग़ज़ल है सरिताओं की यह कल-कल है योगी-सन्यासी का आसन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- तुकबन्दी बिन जग है सूना यही उदाहरण, यही नमूना तुकबन्दी में है अपनापन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- तुकबन्दी बिन काव्य अधूरा मज़ा नहीं मिलता है पूरा तुकबन्दी से होता गायन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- अगर शान से जीना चाहो तुकबन्दी को ही अपनाओ खोलो तो मुख का वातायन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन -- |
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गुरुवार, 14 जुलाई 2022
गीत "तुकबन्दी से होता वन्दन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तुकबंदी से होता वंदन..बहुत सराहनीय और सटीक रचना ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 15 जुलाई 2022 को 'जी रहे हैं लोग विरोधाभास का जीवन' (चर्चा अंक 4491) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत, बहुत उम्दा! सच में शब्दों पर चीर यौवन रहता है, और स्वर व्यंजन ही जीवन हैं।
जवाब देंहटाएं'आता नहीं बुढ़ापा जिसको
जवाब देंहटाएंतुकबन्दी कहते हैं उसको
छाया रहता जिस पर यौवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन'
वाह। क्या बात है। तुकबन्दी पर छाया रहता है जीवन। पहली बार यह प्रयोग देखा।
अति सुन्दर एवं मनोहारी रचनि
जवाब देंहटाएंअगर शान से जीना चाहो
जवाब देंहटाएंतुकबन्दी को ही अपनाओ
खोलो तो मुख का वातायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
...एकदम सही बात
बहुत सही कहा शास्त्री जी , इसीलिये गीत ,हमेशा के लिये होते हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहा सर।
जवाब देंहटाएंसादर