अंजाना है साथी अपना, अंजाना ये गाँव है। अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।। साजन मुझको मिला सलोना, फिर भी सूना सा मन है, याद आ रहा रह-रह करके, वही पुराना आँगन है, अम्मा-बाबुल के दुलार के, सूख गया पनियाँव है। अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।। -- छन-छन बजती चुड़ियाँ-पायल, खनक सुनाता है कंगन, आजादी उड़ने की सिमटी, नहीं रहा उन्मुक्त गगन, इक अनचाहे डर से मेरा, जाम हो गया पाँव है। अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।। -- कैसे रहे सुरक्षित जीवन, ओर-छोर पर बाज हैं, भोली चिड़िया के सपनों की, सहम गयी परवाज हैं, सोनचिरैया के जीवन में, कहीं नहीं अब ठाँव
है। अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।। -- अनाचार और दुराचार का, गली-गाँव में डेरा है, आपाधापी के दंगल में, यहाँ सभी को घेरा है, क्रूर काल भी कदम-कदम पर, चलता अपना दाँव है। अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।। -- |
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मंगलवार, 12 जुलाई 2022
गीत "अंजाना ये गाँव है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक, वाह वाह!
जवाब देंहटाएंइन सिसकियों को किसी बादल ने सुन लिया होगा । इसीलिए कब से बरस रहा है पानी लगातार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन रचना!
जवाब देंहटाएं'साजन मुझको मिला सलोना,
फिर भी सूना सा मन है,
याद आ रहा रह-रह करके,
वही पुराना आँगन है,'
-सच है, बीता समय और गुज़री यादें भुला पान सहज नहीं होता।