सिसक रहा है आज वतन
में, खुशियों का चौबारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।। पगडण्डी पर चोर आ गये, चौराहों पर डाकू, रिश्तों की झाड़ी में
पसरे, हैं दुर्दान्त लड़ाकू, सम्बन्धों में गरल भरा
है, प्यार हुआ आवारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।१। मन में कोरा स्वार्थ
समाया, मुख पर मीठी बातें, ममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें, अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।२। नहीं तमन्ना है दुलार
की, नहीं प्यार में राहत, सन्तानों को केवल है,
अब, अधिकारों की चाहत, पँख निकलने पर पंछी ने,
घर से किया किनारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।३। रोजगार की बन्द राह
हैं, युवकों में बेकारी, वृद्ध पिता की आँखों
में, है झाँक रही लाचारी, यौवन लगता बूढ़ा-बूढ़ा,
पथ में है अँधियारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।४। भवन बने उर्वरा भूमि
पर, फसल नहीं उग पाती, आबादी का जोर बढ़ रहा,
धरती घटती जाती, अमल-धवल गिरि से जो उतरी,
वो मैली जल-धारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।५। उफन रहीं सागर की
लहरें, उमड़ रहीं सरितायें, सीपिकाओं का कवच रिक्त
है, रत्न कहाँ से पायें, जीवन पथ में शूल उगे हैं, "रूप" हुआ
आवारा। छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।६। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 5 अगस्त 2022
गीत "देगा कौन सहारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०६-०८ -२०२२ ) को 'उफन रहीं सागर की लहरें, उमड़ रहीं सरितायें'(चर्चा अंक -४५१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
समसामयिक परिस्थितियों पर आपकी कवितायें बेबाक होती हैं...👏👏👏
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी आप जल्द से जल्द स्वस्थ होकर पुनः आए प्रभु से यही कामना है🙏
जवाब देंहटाएंछल फरेब की काया में जकड़ा है भाई चारा!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना! प्रेरक और उत्साहवर्धक! --ब्रजेन्द्र नाथ