-- आज बहुत है नया-नवेला, कल को होगा यही पुराना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। -- गोल-गोल है दुनिया सारी, चन्दा-सूरज गोल-गोल है। गोल-गोल में घूम रहे सब, गोल-गोल की यही पोल है। घूम-घूमकर, सारे जग को, बना रहा है काल निशाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। -- दिन दूनी औ’ रात चौगुनी, बढ़ती जातीं अभिलाषाएँ। देश-काल के साथ बदलतीं, पाप-पुण्य की परिभाषाएँ। धन संचय की होड़ लगी है, साथ नहीं है कुछ भी जाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। -- कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं, बहुत कठिन जीवन की राहें। मंजिल पर जानेवालों की, छोटे पथ पर लगी निगाहें। लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता, जिसने सही मार्ग पहचाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। -- |
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शनिवार, 27 अगस्त 2022
गीत "साथ नहीं है कुछ भी जाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-8-22} को साथ नहीं है कुछ भी जाना" (चर्चा अंक 4535) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वन्दन
जवाब देंहटाएंलेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जिसने सही मार्ग पहचाना।
सुन्दर सीख
उम्दा रचना
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं'धन-संचय की होड़ लगी है साथ नहीं कुछ भी जाना' - सत्य लिखा है सर। सहज, सरल शब्दों में कालजयी काव्य सृजन। यह कविता हर दौर में प्रासंगिक है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें सर जी। बधाई।
जवाब देंहटाएं