इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे तुम खुद ही पुरज़माल हो अपने शऊर पे -- इंसानियत को दरकिनार कर दिया तुमने इतना नशे में चूर हो अपने गुरूर पे -- दिल से नहीं दिमाग़ से सोचा करो कभी रोटी पकाना सीखिए अपने तँदूर पे -- यूँ अपनी इबादत का दिखावा न कीजिए ईमान भी तो लाइए अपने हुजूर पे -- मौमिन को अपने “रूप” पे कितना फितूर है गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे -- |
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रविवार, 7 अगस्त 2022
ग़ज़ल "यूँ अपनी इबादत का दिखावा न कीजिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०८-०८ -२०२२ ) को 'इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे'( चर्चा अंक -४५१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह, बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल सर।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गज़ल . आन्तिम शेर में मोमिन शब्द से थोड़ा सन्देह हुआ . पर सोचा कि आप दूसरों की रचना क्यों देंगे .
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