मेले से लाता नहीं, चिमटा आज हमीद। हथियारों के साथ अब, मना रहा है ईद।। -- खून-खराबे का चला, रमजानों में दौर। आयत पर कुरआन की, नहीं किसी का गौर।। -- दहशत फैलाने चले, मजहब की ले आड़। मुसलमान इसलाम को, खुद ही रहे पछाड़।। -- मुसलमान जब देश में, खेलें खूनी खेल। भाई-भाई में भला, कैसे हो फिर मेल।। -- मुसलमान पर उँगलियाँ, उठती चारों ओर। मानवता की आज तो, टूट रही है डोर।। -- हिन्दू-सिख-ईसाइ सब, करते अंगीकार। मुसलमान का विश्व में, खिसक रहा आधार।। -- बिगड़ा अब भी कुछ नहीं, बचा लीजिए शाख। पत्थर को ज्वालामुखी, कर देता है राख।। -- भगवा बहुत उदार है, भगवे में हैं सन्त। भगवा नाइंसाफ का, कर देता है अन्त।। -- चाल-चलन ईमान के, होते हैं कुछ ढंग। जप-तप, पूजा-वन्दना, मानवता के अंग।। -- देश विभाजन के समय, मिला नाम था पाक। अपनी हरकत से हुआ, पाक आज नापाक।। -- भूल गया इंसान अब, रब के नेक उसूल। कारगुजारी देखकर, आहत हुआ रसूल।। -- बेमन से होते जहाँ, रोजे और नमाज। मुसलमान की थम गई, दुनिया में परवाज।। -- आजादी हर पन्थ को, ऐसा हिन्दुस्तान। इसीलिए है जगत में, भारत देश महान।। |
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शनिवार, 13 अगस्त 2022
दोहे "मेले से लाता नहीं, चिमटा आज हमीद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-8-22} को राष्ट्र उमंगें वेगवान हुई"(चर्चा अंक 4521) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आज को परिभाषित करते सुंदर सटीक दोहे।
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