-- जो नंगापन ढके हमारा, हमको वो परिधान चाहिए। साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।। -- अपनी मेहनत से ही हमने, अपना वतन सँवारा है, जो कुछ इसमें रचा-बसा, उस पर अधिकार हमारा है, सुलभ वस्तुएँ हो जाएँ सब, नहीं हमें अनुदान चाहिए। साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।। -- प्रजातन्त्र में राजतन्त्र की गन्ध घिनौनी आती है, धनबल और बाहुबल से, सत्ता हथियाई जाती है, निर्धन को भी न्याय सुलभ हो, ऐसा हमें विधान चाहिए। साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।। -- उपवन के पौधे आपस में, लड़ते और झगड़ते क्यों? जो कोमल और सरल सुमन हैं, उनमें काँटे गड़ते क्यों? मतभेदों को कौन बढ़ाता, इसका अनुसंधान चाहिए। साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।। -- इस सोने की चिड़िया के, सारे ही गहने छीन लिए, हीरा-पन्ना, माणिक-मोती, कौओ ने सब बीन लिए, हिल-मिलकर सब रहें जहाँ पर हमको वो उद्यान चाहिए। साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।। -- |
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शुक्रवार, 12 अगस्त 2022
गीत "ऐसा हमें विधान चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंप्रजातन्त्र में राजतन्त्र की गन्ध घिनौनी आती है,
जवाब देंहटाएंधनबल और बाहुबल से, सत्ता हथियाई जाती है,
निर्धन को भी न्याय सुलभ हो, ऐसा हमें विधान चाहिए।
साध्य और साधन में हमको, समरसता संधान चाहिए।।
वस्तुस्थिति से साक्षात कराती उम्दा रचना आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
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