-- नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले भी हैं उफनाये।। आसमान में बिजली चमकी, उमड़-घुमड़ कर बादल छाये। -- बारिश से घर आँगन गीले, टपक रहा हैं निर्धन का डेरा। दरक रही हैं
शैल-शिलाएँ, आफत ने जन-जीवन घेरा। वानर-भालू त्रस्त हो
रहे, कागा काँव-काँव
चिल्लाये। नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले जल से उफनाये।। -- जल की मोटी बूँदें
आयीं, कुदरत ने शृंगार
बिखेरा। आसमान हो गया
गन्दुमी, भरी दुपहरी हुआ अँधेरा।। काफल-सेब, खुमानी-आड़ू, खाकर सबके मन हर्षाये। नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले जल से उफनाये।। -- हरियाली बिखरी धरती पर, दादुर खुश हो करके गाते। सन्नाटे को दुर भगाते, झींगुर अभिनव राग सुनाते। आसमान का पानी पीकर, खेतों में पौधे लहराये। नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले जल से उफनाये।। -- पानी की है ग़जब कहानी, बाहर पानी-भीतर पानी। इठलाती-बलखाती आयी, फिर नदियों में नई जवानी। दो दिन में ही मौसम बदला, बारिश तन की तपन मिटाये। नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले जल से उफनाये।। -- बरस रहा भादो में पानी, बारिश में बाहर मत जाओ। आलू, प्याज और बैंगन के, गरमा-गरम पकौड़े खाओ। अखबारों की नाव बनाने, बालक कागज लेकर आये। नभ में सूरज लुप्त हुआ है, नद-नाले जल से उफनाये।। |
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मंगलवार, 23 अगस्त 2022
बालगीत "उमड़-घुमड़ कर बादल छाये" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन सच आज-कल बादल बड़े मेहरबान है।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंइधर तो कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए बदरा। . बहुत सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह वाह!
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव सृजन
जवाब देंहटाएं