सुबह आयेगी
शाम ढलेगी
रात हो जायेगी
और फिर होगा
नया सवेरा
मिट जायेगा
धरा से अंधेरा
लेकिन...
मन के कोटर में
न कभी धूप आयेगी
और न कभी सवेरा होगा
अंधेरा था
और अंधेरा ही रहेगा
फिर भी..
क्यों करते हैं हम
ख़त्म न होने वाला
ये इन्तजार
सोचते हैं
शायद हो जाये
कोई चमत्कार
इसी अभिलाषा में
तो जी रहे हैं
और दवा के नाम पर
गरल के घूँट पी रहे हैं
नहीं रहा
आह! में असर
दुआएँ भी
हो गयीं हैं बेअसर
चाह तो है
पर राह नहीं है
जिस्म को
रूह की परवाह नहीं है
देह की
बुझ जाती है पिपासा
मगर अधूरी रहती है
आत्मा की अभिलाषा
यही तो
जीवन का चक्र है
इसीलिए
दुनिया वक्र है...!
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंगुरूदेव अति सुन्दर! बधाई इस सुन्दर रचना हेतु!
जवाब देंहटाएंप्रकृति चक्रीय है
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब, कमाल का लिखा है.
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर और नवरात्र की बधाई व शुभकामनाएं.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति | नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI
PLEASE VISIT .
भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज नया रूप है लेकिन अच्छा है।
जवाब देंहटाएंनए वर्ष में नए अंदाज की कविता..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति इलाज़ है अपने आत्म स्वरूप की स्मृति में लौटना .हम कौन थे क्या हो गए .
जवाब देंहटाएंजिंदगी का पाठ पड़ा दिया गुरु जी
जवाब देंहटाएंhttp://guzarish66.blogspot.in/2013/04/1.html
सत्यवचन---
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना .....गहन दर्शन से पूर्ण ...
जवाब देंहटाएंआभार....