रदीफों-काफ़ियों को,
जो इशारों पर नचाता है
ग़ज़लग़ो ग़ज़ल
लिखने के, सलीके को बताता है
देखकर जाम-ओ-मीना, फसल शेरों की उगती है
मिलाकर दाल-चावल
शान से खिचड़ी पकाता है
रवायत का नहीं
मुहताज़ होता है कोई जुम्ला
ज़िगर के खून से वो वजन, लब्ज़ों का बढ़ाता है
महज़ तुकबन्दियों पर
ही, नहीं होता फिदा कोई
सधा अशआर ही माशूक के दिल को रिझाता है
लगी दिल की लगे
जिससे, वही तो दिल्लग़ी होती
सुख़नवर “रूप” मक़्ते में हबीबों को दिखाता है
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गुरुवार, 4 अप्रैल 2013
"ग़ज़ल-सलीके को बताता है..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह आदरणीय गुरुदेव वाह क्या बात छा गए आप लाजवाब प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल के मायने बताती हुई गजल
जवाब देंहटाएंगुरु जी लाजवाब
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या बात
गुरूदेव यही तो आपकी विशेषता है कि रूप हबीबों को ही नहीं रकीबों को भी दिखा देते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर!
Bahut Umda Gazal.....
जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत उम्दा गजल,,,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अशआर हैं गजल के .कई शैर काबिले दाद हैं -
जवाब देंहटाएंलगी दिल की लगे जिससे, वही तो दिल्लग़ी होती
सुख़नवर “रूप” मक़्ते में हबीबों को दिखाता है
देखकर जाम-ओ-मीना, फसल शेरों की उगती है
मिलाकर दाल-चावल शान से खिचड़ी पकाता है
कृपया फसल "शैरों" की उगती है करें .
महज़ तुकबन्दियों पर ही, नहीं होता फिदा होता कोई
सधा अशआर ही माशूक के दिल को रिझाता है
"नहीं होता फ़िदा कोई "करें ,होता दो बार चला आया है .
गजल को फिर से लिखने के सलीके वो बताता है
(दूसरी लाइन ये करके देखें )
वाह ... बहुत ही बढिया ।
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह ! सुभानल्लाह !
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल ...
जवाब देंहटाएंएक कलस काल कीलाल दुजन मैं भरे पंक ।
जवाब देंहटाएंदोनों के कर कल काल का राजा का रंक ॥
भावार्थ : --
एक कलश में मद्य भरी है, तो दुसरे में पाप भरा है ।
संपन्न हो या सम्पन्न हीन इसके हाथो भविष्य में दोनों की ही मृत्यु संभव है ॥
अर्थात : -- " कदाचरण कैसे भी क्यों न हो, अंत में मृत्यु का कारण बनाता है"
'रवायत का नहीं मुहताज़ होता है कोई जुम्ला
जवाब देंहटाएंज़िगर के खून से वो वजन, लब्ज़ों का बढ़ाता है'
-क्या खूब है!
~सादर!!!
आपकी यह लाजवाब रचना 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की जा रही है। http://nirjhar-times.blogspot पर आपका हार्दिक स्वागत है,कृपया अलोकन करें।आपका सुझाव सादर आमंत्रित है।
जवाब देंहटाएंमहज़ तुकबन्दियों पर ही, नहीं होता फिदा कोई.
जवाब देंहटाएं- बिलकुल सच कहा है आपने-धन्यवाद!
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर मयंक दा
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएं