दीमकों से चमन को कैसे बचायें?
मोतियों की फसल को कैसे
उगायें?
अन्न को घुन मुक्त होकर चर
रहे हैं,
माल को परदेश में वो भर
रहे हैं,
दरिन्दे बेखौफ हरकत कर रहे
हैं,
बालिकाएँ और बालक डर रहे
हैं,
हम बदन के कोढ़ को कैसे
मिटायें?
मोतियों की फसल को कैसे उगायें?
कोयला-लक्कड़ व पत्थर खा
रहे हैं,
मुल्क में गद्दार बढ़ते जा
रहे हैं,
कुर्सियों पर बोझ बनकर छा
रहे हैं,
सुख यहाँ काले फिरंगी पा
रहे हैं,
अब सरोवर को विमल कैसे
बनायें?
मोतियों की फसल को कैसे उगायें?
शाख अपनी धूल में हमने
मिला दी,
खो चुकी है आज अपनी शान
खादी,
कह रही हिन्दोस्ताँ की आज
दादी,
अब लुटेरों की बनी पहचान
खादी,
चैन की वंशी यहाँ कैसे
बजायें?
मोतियों की फसल को कैसे उगायें?
हम भुलाने में लगे हैं धर्म और ईमान को,
लूटने में हम लगे हैं राम-को रहमान को,
छोड़ बैठे आज हम परिवेश के परिधान को,
हो गया है आज क्या अच्छे-भले इन्सान को,
सभ्यता का पाठ अब कैसे पढ़ायें?
मोतियों की फसल को कैसे उगायें?
|
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सोमवार, 22 अप्रैल 2013
"दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
दुनिया की हकीकत बयां करती सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंहम भुलाने में लगे हैं धर्म और ईमान को,
जवाब देंहटाएंलूटने में हम लगे हैं राम-को रहमान को,nalatest post सजा कैसा हो ?
latest post तुम अनन्त
hut sundar
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
मुल्क में गद्दार बढ़ते जा रहे हैं,कुर्सियों पर बोझ बनकर छा रहे हैं,
जवाब देंहटाएंसाथक रचना !!
आभार आदरणीय !!
"साथक को सार्थक पढ़ा जाए "
हटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबेख़ौफ़ दरिन्दे
कुचलती मासूमियत
शर्मशार इंसानियत
सम्बेदन हीनता की पराकाष्टा .
उग्र और बेचैन अभिभाबक
एक प्रश्न चिन्ह ?
हम सबके लिये.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंसच बहुत मुश्किल हो गया है जीना इन हालात में
जवाब देंहटाएंवर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य का भयावह चित्र ....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक,महोदय....
सटीक और प्रहार करती रचना शास्त्री जी .........
जवाब देंहटाएंआज के हालात पे सही प्रहार करती रचना!
जवाब देंहटाएंsahi chot ki hai bhayi sahib !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ... .सार्थकता को लिए हुए.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी....और सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
विचारणीय कविता
जवाब देंहटाएंनमन है आपकी लेखनी को. आज के भारत के आम आदमी की चिन्ता को शब्दों में बखूबी ढ़ाल दिया है.
जवाब देंहटाएंहम बदन के कोढ़ को कैसे मिटायें?
जवाब देंहटाएंमोतियों की फसल को कैसे उगायें?
सटीक रचना .....
शुभकामनायें!
वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य पर प्रहार करती रचना, हम बदन के कोढ़ को कैसे मिटायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें?
जवाब देंहटाएंआज के राजनीतिक विद्रूप पर सटीक और सशक्त टिपण्णी है यह रचना ओज संसिक्त .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचारणीय प्रस्तुति जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2
जवाब देंहटाएंदीमको को देख रहे हैं सब लोग
जवाब देंहटाएंखुद भी दीमक हो जा रहे हैं
अच्छा है कुछ लोग तो हैं
जो देश बचाने के लिये
आगे आ रहे हैं
बता रहे हैं सुझा रहे हैं
दीमकों को दिखा रहे हैं !
बहुत सुंदर !
विचारणीय सार्थक रचना. आभार
जवाब देंहटाएंAaj ke samajik aur rajnayik watawaran par sateek tippani.
जवाब देंहटाएंआज के वक्त के मुताबिक सटीक रचना
जवाब देंहटाएंसब खाया, अब दृष्टि हमारे खानपान पर।
जवाब देंहटाएंसभ्यता का पाठ अब कैसे पढ़ायें?
जवाब देंहटाएं