शून्य में दुनिया समायी, शून्य से संसार है।
शून्य ही विज्ञान का अभिप्राण है आधार है।।
शून्य से ही नाद है
और शून्य से ही शब्द हैं।
शून्य के बिन, प्राण-मन, सम्वेदना निःशब्द
हैं।।
शून्य में हैं
कल्पनाएँ, शून्य मे है
जिन्दगी।
शून्य में है
भावनाएँ, शून्य में है
बन्दगी।।
शून्य ही है जख़्म, उनका शून्य ही मरहम
बना।
शून्य के बिन गणित का, सिद्धान्त तो है
अनमना।।
शून्य में ही चैन
हैं, और शून्य मे ही मौन
हैं।
शून्य जैसे सार्थक
को, सब समझते गौण हैं।।
शून्य से गणनाएँ
होती, शून्य ही आकाश हैं।
ग्रह-उपग्रह, चाँद-तारे, शून्य के ही पास
हैं।।
शून्य से जीवन शुरू
है, शून्य पर ही अन्त है।
आदि से ही शून्य का महिमा अपार-अनन्त है।।
शून्य के बिन साधना
का भी अधूरा ज्ञान है।
शून्य से ही तो हमारी विश्व में पहचान है।। |
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मंगलवार, 2 अप्रैल 2013
"शून्य की महिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शून्य से ही नाद है और शून्य से ही शब्द हैं।
जवाब देंहटाएंशून्य के बिन, प्राण-मन, सम्वेदना निःशब्द हैं।।
शून्य में हैं कल्पनाएँ, शून्य मे है जिन्दगी।
शून्य में है भावनाएँ, शून्य में है बन्दगी।।
बेहद सार्थक एवं सशक्त प्रस्तुति ... आभार
बहुत से व्यक्ति भावशून्य होते हैं।आगे पीछे क्या चल रहा है इससे मतलब ही नही रखते है.बहुत ही बेहतरीन और सार्थक संदेस देती सुन्दर रचना...सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमूलरूप में संख्या केवल दो ही हैं- एक (१) और शून्य (०). समझने और समझाने की दृष्टि से व्यावहारिक रूप में अनंत (∞) को इसमें भी सम्मिलित किया जा सकता है. इससे
जवाब देंहटाएंसृष्टि की व्याख्या में सरलता होगी. परमतत्व एक (१) है; तत्वरूप में भी और इकाईरूप में भी. इस परमतत्व का प्रकटन और विलोपन होता रहता है. प्रकटरूप में अनंत है, गतिज ऊर्जा है और विलोपन (प्रलय) की स्थिति में वही शून्य है. प्रलयावस्था में यह अनंत निष्क्रिय, अर्थहीन हो जाता है और केवल शून्य ही शेष बचता है. इस स्थिति में कोई माप नहीं, कोई मान नहीं, कोई दृश्य नहीं, कोई सृष्टि नहीं, कोई दृष्टि नहीं, कोई द्रष्टा नहीं. परन्तु अस्तित्वाव्मान का अस्तित्व है, मूलऊर्जा विद्यमान है- स्थितिज ऊर्जा के रूप में. इसके अस्तित्व को नाकारा नहीं जा सकता. अरे ये सारे अंक तो ‘शून्य’ और ‘अनन्त’ के बीच का विवर्त है. शून्य के साथ अंक जुड जाने से वह भौतिक रूप से मूल्यवान–रूपवान हो
जाता है. सगुण हो जाता है. यह सगुण तो निर्गुण में ही प्रतिष्ठित है. मृत्यु इसी लिए बड़ी है किसी भी जीवन से. जीवन मृत्यु में विश्राम पता है और यह प्रकृति और सृष्टि प्रलय में, शून्य में.
सही कहा आपने सर!
जवाब देंहटाएंसब कुछ शून्य से ही उपजा है... और शून्य पर ही ख़त्म.....
~सादर!!!
शून्य में हैं कल्पनाएँ, शून्य मे है जिन्दगी।
जवाब देंहटाएंशून्य में है भावनाएँ, शून्य में है बन्दगी।।
सार्थक एवं सशक्त प्रस्तुति ...
Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
shuny ki mahima anant hai,bahut hi sundar prastuti
जवाब देंहटाएंसही बात ... गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंशून्य से उपज, सब शून्य में समा जाना है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसर्वमान्य-सर्वविदित, शून्य-महिमा का
वर्णन भाया.धन्यवाद.
शून्य से ही सब कुछ है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकल दिनांक 04/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
शून्य की व्यापकता की सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंबहुत ऊँचे को शून्य से गुणा करदो उसका काम हो जायेगा :)
मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
शून्य से ही नाद है और शून्य से ही शब्द हैं।
जवाब देंहटाएंशून्य के बिन, प्राण-मन, सम्वेदना निःशब्द हैं।..
शून्य से शुरू हुई श्रृष्टि शून्य में ही समा जाती है ... हम भी तो वो ही करते हैं ...
शशक्त प्रभावी रचना ... नमस्कार शास्त्री जी ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुती .........शून्य का रहस्यवाद
जवाब देंहटाएं