जिन्दगी सबकी बनी है, गुनगुनाने के लिए
फूल खिलते हैं चमन में,
मन रिझाने के लिए
सेंकते सब सर्दियों में, गुनगुनी सी धूप को
गर्मियों में सूर्य आता,
तन जलाने के लिए
आपसी सम्बन्ध के, धागे बहुत नाज़ुक यहाँ
उम्र जाती है ग़ुज़र,
रिश्ते बनाने के लिए
हो सके तो भूल जा, अपनी वफाओं का सिला
नेकियाँ होती नहीं,
उनको सुनाने के लिए
तल्ख़ियों से तल्ख़ियाँ, लेती जनम संसार में
तू यहाँ आया,
सुरीले गीत गाने के लिए
मत ज़माने को दिखाना, उस घिनौने "रूप" को
आदमी है आदमीयत को,
दिखाने के लिए
|
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शनिवार, 20 अप्रैल 2013
"ग़ज़ल-फूल खिलते हैं चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मत ज़माने को दिखाना, उस घिनौने "रूप" को
जवाब देंहटाएंआदमी है आदमीयत को, दिखाने के लिए
..सच इंसान में इंसानियत न हो तो वह इंसान कहलाने योग्य नहीं .. इंसानियत की तौहीन है वह ..
..बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है.
जवाब देंहटाएंbehad gambhir aur marmik prastuti
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय||
आपसी सम्बन्ध के, धागे बहुत नाज़ुक यहाँ
जवाब देंहटाएंउम्र जाती है ग़ुज़र, रिश्ते बनाने के लिए,,,,,
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर गजल ,,,
RECENT POST : प्यार में दर्द है,
बहुदिश, बहुमुखी,बहुरंग शेर !वधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ग़ज़ल .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी ...!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रविष्टि वाह!
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 22/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत ही खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंखुबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल.....
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट "अब और नहीं सहेंगे..." पर सादर आमंत्रित.
नेकी कर दरिया में डाल -बहुत खूब -
जवाब देंहटाएंहो सके तो भूल जा, अपनी वफाओं का सिला
नेकियाँ होती नहीं, उनको सुनाने के लिए
khoobsurat gazal guru jee
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खुबसुरत सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंहो सके तो भूल जा, अपनी वफाओं का सिला
जवाब देंहटाएंनेकियाँ होती नहीं, उनको सुनाने के लिए
..वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
भला कर भूल जा!!.......बहुत बढ़िया रचना ,महोदय.
जवाब देंहटाएं