घर-आँगन-कानन में जाकर, केवल तुकबन्दी करता हूँ। अनुभावों का अनुगायक हूँ, मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। है नहीं मापनी का गुनिया, अब तो अतुकान्त लिखे दुनिया। असमंजस में हैं सब बालक, क्या याद करे इनको मुनिया। मैं बन करके पागल कोकिल, कोरे पन्नों को भरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। आयुक्त फिरें मारे-मारे, उन्मुक्त हुए बन्धन सारे। जीवन उपवन के शब्दों में, अब तुप्त हो गये बंजारे। पतझर की मारी बगिया में, मैं सुमन सुगन्धित झरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। दे पन्त-निराला की मिसाल, चौकीदारी करते विडाल। निर्मल कैसे अब नीर रहे, कचरा गंगा में रहे डाल। मिलते हैं मोती बगुलों को, मैं घास-पात को चरता हूँ। मैं कवि लिखने से डरता हूँ।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 27 नवंबर 2021
गीत "मैं घास-पात को चरता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।.. सटीक अभिव्यक्ति । आपके भावों से सहमत ।
बहुत ही उम्दा रचना..।
जवाब देंहटाएंसादर वन्दन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंपन्त और निराला कौन?
जवाब देंहटाएंकिसी फ़िल्म में इनके लिखे गाने तो नहीं सुने !
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
वाह!!!
कमाल का सृजन।
लाजवाब।
है नहीं मापनी का गुनिया,
जवाब देंहटाएंअब तो अतुकान्त लिखे दुनिया।
असमंजस में हैं सब बालक,
क्या याद करे इनको मुनिया।
मैं बन करके पागल कोकिल,
कोरे पन्नों को भरता हूँ।
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।