हम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में। प्यार करते हैं हम पत्थरों से सदा, ये तो शामिल हमारे हैं संसार में।। देवता हैं यही, ये ही भगवान हैं, सभ्यता से भरी एक पहचान हैं, हमने इनको सजाया है घर-द्वार में। ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।। दर्द सहते हैं और आह भरते नही, ये कभी सत्य कहने से डरते नही, गर्जना है भरी इनकी हुंकार में। ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।। साथ करते नही सिरफिरों का कभी, ध्यान धरते नही काफिरों का कभी, ये तो रहते हैं भक्तों के अधिकार में। ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।। |
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मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
"बात करते हैं हम पत्थरों से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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साथ करते नही सिरफिरों का कभी,
जवाब देंहटाएंध्यान धरते नही काफिरों का कभी,
ये तो रहते हैं भक्तों के अधिकार में।
ये तो शामिल हमारे हैं परिवार में।।
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर मन की अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
वाह...............
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..........
बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंvaah bahut khoob pattharon par bhi aapki kalam chal gai.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन............
जवाब देंहटाएंसादर.
गंगा मेरी माँ का नाम ,बाप का नाम हिमालय .प्रकृति के प्रति यह मानवी दृष्टि ही तो पहाड़ (पहाड़ियों )की विशेषता है सहजता है .
जवाब देंहटाएंआप अनुकूल स्थान पायें सरकार में राज्य सभा में आयें ,शुभकामनाएं .
पहाड़ों में रचा बसा जीवन..
जवाब देंहटाएंउम्दा !!
जवाब देंहटाएंmaano to bhagwaan...naa maano to patthar!
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन, आभार.
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन, आभार.
जवाब देंहटाएंपत्थर के परिवार में, शंकर जल कोहनूर ।
जवाब देंहटाएंतरह-तरह के अयस्क से, हैं पत्थर भरपूर ।
हैं पत्थर भरपूर, मानिए लगें देवता ।
करते इच्छा पूर, ध्यान कर भक्त सेवता ।
पत्थर दिल था प्यार, ज़माना गया अठहत्तर ।
माने पिछले साल, बने जब जीवन पत्थर ।।
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन,
जवाब देंहटाएंवाकई पत्थर हमारे परिवार में सदियों से शमिल है...बहुत सुन्दर रचना!....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं