किसने अश्रु भरे सागर में, पानी सब नमकीन हो गया। नीलगगन में उड़ता बादल, क्यों इतना ग़मग़ीन हो गया? मैदानों से आकर नदियाँ, तुझको जल से पोषित करतीं। कलकल-छलछल, करती आतीं, खुश होकर तेरा तन भरतीं। फिर क्यों उनका मीठा पानी, खारा और मलीन हो गया।। रजनी में नभ की आँखों से, शबनम की कुछ बून्द टपकतीं। सुबह-सवेरे हरित पात पर, मोती जैसी खूब चमकतीं। सूरज की किरणों को पाकर, सब अस्तित्व विलीन हो गया।। रत्नों का लालच सबको है, लेकिन हाथ नहीं आते हैं। अमृत की चाहत में गागर, खारे जल से भर लाते हैं। जीवन की आपाधापी में, लक्ष्य बहुत संगीन हो गया।। |
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मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
"लक्ष्य बहुत संगीन हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर शब्दों से सजी हुई...सुन्दर रचना!...आभार!
जवाब देंहटाएंsundar rachna aabhar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!...आभार!
जवाब देंहटाएंजीवन की आपाधापी में,
जवाब देंहटाएंलक्ष्य बहुत संगीन हो गया।…………बिल्कुल सही कहा।
बहुत गहन और बहुत संवेदनशील रचना ...शास्त्री जी ...बहुत अच्छी लगी ...!!
जवाब देंहटाएंआभार ...!!
बहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंयेन केन प्रकारेण पाना ध्येय हो गया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर ...!
जवाब देंहटाएंkalamdaan
shandar prastuti.
जवाब देंहटाएंदर्शनीय प्राकृतिक उपालंभ
जवाब देंहटाएंगेयात्मकता लिए सौन्दर्य बोध की रचना .दर्शन से संसिक्त .काव्य से अलंकृत .
जवाब देंहटाएंगेयात्मकता लिए सौन्दर्य बोध की रचना .दर्शन से संसिक्त .काव्य से अलंकृत .
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर है.बेहद ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक भाव लिए अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंशब्द भाव मन को छुये, सुंदर अर्थ महीन
जवाब देंहटाएंबादल क्यों गमगीन है, सागर क्यों नमकीन.
वाह शास्त्री जी, अनमोल रचना...
बढ़िया अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंवाकई अदभुद !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंरत्नों का लालच सबको है,
जवाब देंहटाएंलेकिन हाथ नहीं आते हैं।
अमृत की चाहत में गागर,
खारे जल से भर लाते हैं।
...बहुत खूब! बहुत सार्थक और सुन्दर रचना...
khoobsoorat bhav...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंअमृत की चाहत में गागर, खारे जल से भर लाते हैं।जीवन की आपाधापी में,लक्ष्य बहुत संगीन हो गया।। wow!
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